Book Title: Ayodhya ka Itihas
Author(s): Jeshtaram Dalsukhram Munim
Publisher: Jeshtaram Dalsukhram Munim

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Page 21
________________ [ ] अयोध्या का इतिहास जलकेलिरतस्त्रीणां त्रुटित हीरमौक्तिकैः । ताम्रपणी श्रियं तत्र दयते गृहदीधिकाः ॥२०॥ तत्रैभ्याः संति तं येषां कस्याप्येकतमस्य सः । व्यवहतगतो मन्ये वणिक पुत्रो धनाधिपः ॥९२१॥ नकमिंदु दृषद्भित्ति मंदिरस्यं दिवारिभिः । प्रशांतपशवो रथ्याः क्रियते तत्र सर्गतः ।।२२।। पापीकूप सरोलः सुधा सोदरवारिभिः । नागलोकं नवसुधाकुम्भं परिवभूव सां ॥९२३॥ कयेरै नै पड़तालीस कोस लम्बी छत्तीस कोस चौड़ी अस्ति नाम्नां विनीतेति शिरोमणिरिवावनः । -द्वी पर्व। राजधानी का निर्माण। - - कधेरै नैं पड़तालीस कोस लम्बी छत्तीस कोस चौड़ी “विनीता नामक नगरी तैयारकी यक्षपति कवेर ने उस नगरी को अक्षयवस्त्र, नेपथ्य और धन्य धान्य से पूर्ण किया। उस नगरी में हीरे इन्द्र नोलमणि और वैडयं मणि की बड़ी २ हवेलियां अपनी विचित्र किरणों से मांकाश में भीतके विना

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