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अयोध्या का इतिहास।
सुरा ससंभमा सद्यः पाकशासनशासनात् । तां पुरी परमानन्दाव्यदुः सुरपरी: विभाः ७०॥११
कल्प वृक्ष के नष्ट होने पर उस देश में ( आर्यावर्त में ) उन दोनों ने मलंकृत किया था, उन्हीं के पुण्यों से माहूत हो. कर इन्द्र नै पुरी रची जो स्वर्ग के देवताओं ने बड़े चाव से इन्द्र की माचा पाकर एफ. पुरो बनाई जो देव पुरी के समान थी। स्वर्गस्येव प्रतिच्छन्दं भूलोकेऽस्मिन्निधीमुभिः । विशेषरमणीयेच निर्ममे साऽमौः पुरी ॥७१॥ १२॥
देवताओं ने यह पुरी ऐसो बनाई कि भूलोक में स्वर्ग का प्रतिविम्ब हो। स्वस्वर्गस्त्रिदशाबासस्स्वलय हन्यवमन्यते । परः शतः जमावासभूमिका तान्तु ते वधुः ॥७२॥ इतस्ततश्च विक्षिप्तानानीयांनीय मानवान् । परा निवेशयामासुविन्यासः रिविधैः सुराः ॥७३॥
देवताओं ने अपने रहने की जगह का अपमान किया, क्योंकि यह त्रिदशा वास (त्रिदश ३३ देवतामों का