________________ DROORBOROORORSCREDROORRORE . मुनिश्री पुण्यविजय जी ने भी उक्त विचार का समर्थन करते हुए कहा है कि आगमों की / ca निरुक्ति-पद्धति से व्याख्या और नियुक्ति-रचना की परम्परा अति प्राचीन रही है। जैसे- वैदिक परम्परा M में 'निरुक्त' (यास्क आदि रचित) अति प्राचीन है, वैसे ही जैन परम्परा में भी नियुक्ति-व्याख्यान / परम्परा अति प्राचीन है। अनुयोगद्वार में नियुक्ति-अनुगम' का निर्देश है और वहां नियुक्ति रूप ब कुछ गाथाएं भी प्राप्त हैं। भद्रबाहु (द्वितीय) के पूर्व भी नियुक्ति साहित्य के अस्तित्व को नकारा नहीं जा सकता। अत: नियुक्ति की रचना में श्रुतकेवली भद्रबाहु (प्रथम) और भद्रबाहु 2 (द्वितीय)-दोनों का ही योगदान है -ऐसा माना जाना चाहिए। प्रो. सागरमल जैन के मत में " व आवश्यक नियुक्ति के रचनाकार आर्यभद्र हैं, भद्रबाहु नहीं (द्र. श्रमण, अप्रैल-जून 2008, पृष्ठ-194)। उनके अनुसार नियुक्ति का रचनाकाल ई. 2-3 शती है। पाठकों के लाभार्थ भद्रबाहु (प्रथम) और भद्रबाहु (द्वितीय) -दोनों का परिचय यहां प्रस्तुत किया जा रहा है भद्रबाहु (प्रथम) श्रुतधर आचार्यों में पांचवें श्रुतधर आ. भद्रबाहु (प्रथम) का महनीय स्थान है। श्रुत-परम्परा " c& में (अर्थ की दृष्टि से) ये अंतिम श्रुतधर थे। इनके दीक्षा-गुरु व शिक्षा-गुरु श्रुतधर आचार्य यशोभद्र थे। a इनका गोत्र 'प्राचीन' था। इनके जीवन आदि के सम्बन्ध में पर्याप्त सामग्री प्रबन्धकोश, प्रबन्ध चिन्तामणि, तित्थोगालिय पइन्ना, आवश्यक चूर्णि, आदि में प्राप्त है। उनका जन्म वि. पूर्व 376, दीक्षा- वर्ष वि. पू. 331 माना जाता है। वि. पू. 314 में ये आचार्य पद पर प्रतिष्ठित हुए। जैन शासन को वीर निर्वाण की द्वितीय शताब्दी के मध्यकाल में भयंकर दुष्काल से जूझना " पड़ा। उचित भिक्षा के अभाव में अनेक श्रुतसम्पन्न मुनि काल-कवलित हो गये। भद्रबाहु के अलावा & कोई भी मुनि 14 पूर्व का ज्ञाता नहीं बचा था। वे उस समय नेपाल की पहाड़ियों में महाप्राण ध्यान की व साधना कर रहे थे। संघ को इससे गंभीर चिन्ता हुई। आगम निधि की सुरक्षा के लिए श्रमण संघाटक 4 नेपाल पहुंचा। करबद्ध होकर श्रमणों ने भद्रबाहु से प्रार्थना की। "संघ का निवेदन है कि आप वहां << पधार कर मुनिजनों को दृष्टिवाद की ज्ञानराशि से लाभान्वित करें।" भद्रबाहु ने अपनी साधना में विक्षेप " समझते हुए इसे अस्वीकार कर दिया। किन्तु श्रमण-संघ की ओर से प्रायश्चित्त दण्ड देने की स्थिति को दृष्टिगत रख कर उन्होंने " / आगम-वाचना देने की स्वीकृति दी। महामेधावी, उद्यमवंत, स्थूलभद्र आदि पांच सौ श्रमण, संघ का 222222333332332223333333333333333333333333232 : - 808Re8c6908880880880886 v -