Book Title: Atmatattva Vichar Author(s): Lakshmansuri Publisher: Atma Kamal Labdhisuri Gyanmandir View full book textPage 9
________________ तीन लिए व्यक्ति में, मानव-समाज में, इस विश्वब्रह्मांड में जहाँ और जब धर्म का व्यभिचार होता है; अधर्म-अनियम का पालन होता है, वहाँ और तब अशांति की सृष्टि होती है। आज विश्व में अशांति का मूल कारण धर्म का सर्वांग रूप से पालन न होना ही है । यह व्यापक धर्म क्या है ? यह है धैर्य, क्षमा, संयम, अचौर-कर्म, शुचिता, इंद्रियनिग्रह, नीर-क्षीर-विवेकिनी बुद्धि, विद्या, सत्य, अक्रोध । मनु महाराज कहते हैं : धृतिर्थमा दमोऽस्तेयं शौचमिद्रिय निग्रहः । धीविद्या सत्यमक्रोधो दशकं धर्मलक्षणम् ॥ सभ्यता तथा संस्कृति संपन्न मानव जाति की विभिन्न शाखाएँ ऐसे धर्म का ही आश्रय लेकर अपने मत, पंथ, मार्ग के अनुसार मानव-कल्याण में युगों से निरत है। 'आत्मतत्त्व-विचार' में श्रीमत् विजय लक्ष्मण सूरीश्वर जी महाराज भी मानव-कल्याण के लिए ही प्रवृत्त दिखाई पड़ते हैं। ___ संसार के सभी मत या पन्थ इसी व्यापक धर्म को स्पष्ट कर लोक मानस में इसकी प्रतिष्ठा करते चले आ रहे हैं। नाना दृष्टियों से, नाना चेष्टाओं से, नाना मतों या पन्थों को इस व्यापक धर्म को स्पष्ट इसलिए करना पड़ता है कि अपनी व्यापकता के कारण यह एक ही मत या पन्ध द्वारा समग्रतः उद्घाटित नहीं किया जा सकता। इस धर्म में इतने सत्य हैं कि जो जिस दृष्टिकोण (ऐंगिल ) से इसे देखता है उसे उस दृष्टिकोण में ही सत्य की उपलब्धि होती है। यही कारण है कि इस व्यापक धर्म के सत्य युगों से मनीषियों द्वारा उद्घाटित और उपलब्ध होने पर भी अभी ये समग्रतः मानव-जाति के संमुख नहीं आ पाए हैं। और, कोई मनीषी यह दावा भी नहीPage Navigation
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