Book Title: Aspect of Jainology Part 2 Pandita Bechardas Doshi
Author(s): M A Dhaky, Sagarmal Jain
Publisher: Parshwanath Vidyapith
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रामपुत्त या रामगुत्त: सूत्रकृताङ्ग के सन्दर्भ में ?
विकल्प ही अधिक युक्तिसङ्गत है । इस बात के भी यथेष्ट प्रमाण हैं कि उक्त रामगुप्त की पहचान इसि - भासिया के रामपुत्त अथवा पालि साहित्य के उदकरामपुत्त से की जा सकती है, जिनका उल्लेख हम आगे करेंगे |
सर्वप्रथम हमें सूत्रकृताङ्ग में जिस प्रसङ्ग में रामगुप्त का नाम आया है, उस सन्दर्भ पर भी थोड़ा विचार कर लेना होगा । सूत्रकृताङ्ग में नमि, बाहुक, तारायण ( नारायण ), असितदेवल, द्वैपायन, पाराशर आदि ऋषियों की चर्चा के प्रसङ्ग में ही रामगुप्त का नाम आया है।' इन गाथाओं में यह बताया गया है कि नमि ने आहार का परित्याग करके, रामगुप्त ने आहार करके, बाहुक और नारायण ऋषि ने सचित्त जल का उपभोग करते हुए तथा देवल, द्वैपायन एवं पाराशर ने वनस्पति एवं बीजों का उपभोग करते हुए मुक्तिलाभ प्राप्त किया। साथ ही यहाँ इन सबको पूर्वमहापुरुष एवं लोकसम्मत भी बताया गया है । वस्तुतः यह समग्र उल्लेख उन लोगों के द्वारा प्रस्तुत किया गया है, जो इन महापुरुषों का उदाहरण देकर अपने शिथिलाचार की पुष्टि करना चाहते हैं । इस सन्दर्भ में "इह सम्मता"" शब्द विशेष द्रष्टव्य है ।
यदि हम “इह सम्मता” का अर्थ - जिन प्रवचन या अर्हत्-प्रवचन में सम्मत - ऐसा करते हैं, तो हमें यह भी देखना होगा कि अर्हत्-प्रवचन में इनका कहाँ उल्लेख है और किस नाम से उल्लेख है ? इसिभासिया में इनमें से अधिकांश का उल्लेख है, किन्तु हम देखते हैं कि वहाँ रामगुप्त न होकर रामपुत्त शब्द है । इससे यह सिद्ध होता है कि सूत्रकृताङ्ग में उल्लिखित रामगुत्त समुद्रगुप्त का पुत्र न होकर रामपुत्त नामक कोई अर्हत् ऋषि था । यहाँ यह भी प्रश्न स्वाभाविक रूप से उठाया जा सकता कि यह रामपुत्त कौन था ? पालि साहित्य में हमें रामपुत्त का उल्लेख उपलब्ध होता है । उसका पूरा नाम 'उदक रामपुत्त' है। महावस्तु एवं दिव्यावदान में उसे उद्रक कहा गया है । अङ्गुत्तरनिकाय के वस्सकारसूत्र ' में राजा इल्लेय के अङ्गरक्षक यमक एवं मोग्गल को रामपुत्त का अनुयायी बताया गया है । मज्झिमनिकाय, संयुत्तनिकाय और दीघनिकाय में भी उदकरामपुत्त का उल्लेख है ।" जातक में उल्लेख है कि बुद्ध ने उदकरामपुत्त से ध्यान की प्रकिया सीखी थी । यद्यपि उन्होंने उसकी मान्यताओं की समालोचना भी की है - फिर भी उनके मन में उसके प्रति बड़ा आदर था और ज्ञानप्राप्ति के बाद उन्हें धर्म के उपदेश योग्य मानकर उनकी तलाश की थी, किन्तु तब तक उनकी मृत्यु हो चुकी थी । इन सभी आधारों से यह स्पष्ट है कि सूत्रकृताङ्ग में उल्लिखित रामपुत्त ( रामगुत्त )
१. सूत्रकृताङ्ग १. ३. ४. २-३ । २. एते पुच्वं महापुरिसा आहिता भोच्चा बीओदगं सिद्धा इति - सूत्रकृताङ्ग, १.३. ४. ४ । ३. रामपुत्तेण अरहता इसिणं बुझतं । - इतिभासियाई, २३ । ४. ये समणे रामपुत्त अभिप्पसन्ना - अङ्गुत्तर निकाय, ४।१९।७ ।
५. मज्झिमनिकाय, २/४/५ संयुक्त निकाय, ३४/२/५/१० ।
६. अथ खो भगवतो एतदहोसि - " कस्स नु खो अहं पठमं धम्मं देसेय्यं ? को इमं धम्मं खिप्पमेव आजानिस्सती 'ति ? अथ खो भगवतो एतदहोसि - "अयं खो उद्दको रामपुत्तो पण्डितो ब्यत्तो मेधावी दीघरतं अप्परजक्खजातिको; यन्नूनाहं उद्दकस्स रामपुत्तस्स पठमं धम्मं देसेय्यं, सो इमं धम्मं खिप्पमेव आजानिस्तीति । अयं खो अन्तरहिता देवता भगवतो आरोचेसि - " अभिदोसकालंकतो, भन्ते, उद्दको रामतोति । भगवतो पिखो जणं उदपादि "अभिदोस कालंकतो उद्दको रामपुत्तो 'ति । - महावग्ग १ ६ १०
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इह सम्मता । मेयमणुस्सुअ ||
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