Book Title: Aspect of Jainology Part 2 Pandita Bechardas Doshi
Author(s): M A Dhaky, Sagarmal Jain
Publisher: Parshwanath Vidyapith
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भिखारी राम यादव
भङ्गों से
अब प्रश्न यह है कि अवक्तव्य को -C से क्यों प्रदर्शित किया गया है ? इस प्रश्न का उत्तर है कि अवक्तव्य वक्तव्य पद का निषेधक है। पाश्चात्य तर्कशास्त्र में किसी निषेध पद को विधायक प्रतीक से दर्शाने का विधान नहीं है। वहाँ पहले विधायक पद को विधायक पद से दर्शाकर निषेधात्मक बोध हेतु उस विधायक पद का निषेध किया जाता है। इसलिए पहले वक्तव्य पद हेतु प्रतीक प्रस्तुत कर अवक्तव्य के बोध के लिए उस C का निषेध अर्थात् -C किया गया है। अब यदि यह कहा जाये कि ऐसा मानने पर सप्तभङी-सप्तभङी नहीं बल्कि अष्टभङी बन जायेगा. तो ऐसी बात मान्य नहीं हो सकती क्योंकि जैन तर्कशास्त्र में सप्तभङ्गी की ही परिकल्पना है, अष्टभड़ी की नहीं; और वक्तव्य रूप भंग सप्तभङ्गी में इसलिए भी स्वीकार नहीं किया जा सकता कि अवक्तव्य के अतिरिक्त शेष भङ्ग तो वक्तव्य ही हैं अर्थात् वक्तव्यता का होता है। इसलिए वक्तव्य भङ्गको स्वतन्त्र रूप से स्वीकारा नहीं जा सकता है। वह तो प्रथम अस्ति, द्वितीय नास्ति और तृतीय क्रम भावी अस्ति-नास्ति के रूप में उपस्थित ही है।
दूसरे दृष्टिकोण के अनुसार 'स्यात्' पद अचर है। उसके अर्थ अर्थात् भाव में कभी भी परिवर्तन नहीं होता है । वह प्रत्येक भंग के साथ एक ही अर्थ में प्रस्तुत है। इस प्रकार इस दृष्टिकोण को मानने से नास्ति भंग में द्विधा निषेध आता है, जिसका निम्न प्रकार से प्रतीकीकरण किया जा सकता है
(१) स्यादस्ति = P (A) (२) स्यान्नास्ति = P-(-A) अब इसका यह प्रतीकात्मक रूप निम्नलिखित दृष्टान्त से पूर्णतः स्पष्ट हो जायेगा
'स्यात् आत्मा चेतन है ( प्रथम भंग ) और स्यात् आत्मा अचेतन नहीं है' (द्वितीय भंग)। अब यदि हम 'आत्मा चेतन है' का प्रतीक A मानें, तो उसके अचेतन का -A होगा और इसी प्रकार 'आत्मा अचेतन नहीं है' का प्रतीक-(-A) हो जायेगा । इस प्रकार इन वाक्यों में हमने देखा कि वक्ता की अपेक्षा बदलती नहीं है। वह दोनों ही वाक्यों की विवेचना एक ही अपेक्षा से करता है । इस दृष्टिकोण से उपर्युक्त दोनों वाक्यों का प्रारूप यथार्थ है। अब यदि इन दोनों वाक्यों को मूल मानें, तो सप्तभङ्गी का प्रतीकात्मक प्रारूप निम्न प्रकार होगा
(१) स्यादस्ति = P ( A) (२) स्यान्नास्ति = P-(-A) (३) स्यादस्ति च नास्ति = P ( A. -(-A)) (४) स्यादवक्तव्य =P(C) (५) स्यादस्ति च अवक्तव्य - P(A. -C) (६) स्यात् नास्ति च अवक्तव्य = P(-(-A) -C
(७) स्यादस्ति च नास्ति च अवक्तव्य = P(A. -(-A) -C)
इस प्रतीकीकरण में A और --A वक्तव्यता के और -C अवक्तव्यता का भी सूचक है। किन्तु स्यादस्ति और स्यान्नास्ति को क्रमशः A और -A अथवा A और --A मानना उपयुक्त प्रतीत नहीं होता है। क्योंकि नास्तिभङ्ग परचतुष्टय का निषेधक है और अस्तिभङ्ग स्वचतुष्टय का प्रतिपादक है । यदि उन्हें A और -A का प्रतीक दिया जाये, तो उनमें व्याघातकता प्रतीत होती है, जबकि वस्तुस्थिति इससे भिन्न है। अतः स्वचतुष्टय और परचतुष्टय के लिए अलग-अलग प्रतीक अर्थात् A और B प्रदान करना अधिक युक्तिसंगत है।
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