Book Title: Aspect of Jainology Part 2 Pandita Bechardas Doshi
Author(s): M A Dhaky, Sagarmal Jain
Publisher: Parshwanath Vidyapith
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लक्ष्मीचन्द्र जैन
सम्बन्धित करते हैं और रेखागणित को नियमों में बांधते हैं, जिसमें संगीत के वाद्य यन्त्रों में गणितीय अनुपात प्राप्त किये जाते हैं। सुकरात ( ई० पू० ४१५ ) तर्क को आगमन विधि से पुष्ट करते हैं। और सत्य की गहराई में पहुँचने हेतु जीनो ( ई० पू० ४५० ) अनन्त विषयक तथा अनन्तांश विषयक विरोधाभासों को समय और आकाश की संरचनाओं में प्रस्तुत कर घटनाओं द्वारा गति का विश्लेषण करते हैं।
देमोक्रितस ( ई० पू० ४१० ) ने परमाणुवाद स्थापित किया। अरस्तु ( ई० पू० ३८४ से ३२२ ) ने तर्क-वाक्यों का सिद्धान्त बनाया और गणितविज्ञान की नींव प्लेतान ( ई० पू० ४२७ से ई० पू० ३४७ ) के साथ डाली ? यूडो ( ई०पू० ३७०) ने पृथ्वी की गोलाई नापी और इसी प्रकार टालेमी (-२री सदी) ने ग्रहों के गमन को वृत्त गुच्छों द्वारा समझाने का प्रयास किया और डायोफेन्टस ( २७५ ई०) ने यान्त्रिकी तथा उद्स्थैतिकी की नींव डाली। इस प्रकार लगातार विज्ञान, मनोविज्ञान के दायरे को तोड़कर, यन्त्र विज्ञान द्वारा सभी कारणता पर ढलता चला गया। चीन में भी लगभग इन्हीं युगों में वैज्ञानिक क्रान्ति का दृश्य दृष्टिगत होता है । कन्फयूशस, लाओत्जे ने दार्शनिकता के पक्षों को वैज्ञानिक रूप में ढालना प्रारम्भ किया।' आकाशीय पिंडों का गहन अध्ययन, चित्रों सहित चीन में सर्वाधिक हुआ। नये प्रकार के सिद्धान्त बनाये गये और यूनान तथा चीन में पञ्चाङ्गों में सुधार हुए।
न्यूटन ( १६४२ ई० से १७२७ ई० ) ने विज्ञान-जगत् में जो कार्य किया, वह अभूतपूर्व था। गति सम्बन्धी नियमों ने तथा गुरुत्वाकर्षण सम्बन्धी कलन ने सम्पूर्ण यन्त्र विज्ञान जगत् को एक नई दिशा दी। खगोलीय पिण्डों के गमन का कारण, उनके बीच की दूरियाँ, गतियों में परिवर्तन आदि का आधार गुरुत्वाकर्षण का बल बनाया गया, जिससे आगे आने वाली घटनाओं का समय, स्थिति आदि की गणना सम्भव होने लगी। कोई भी यन्त्र सम्बन्धी घटना से प्रकृति की घटनाओं का कलन किया जाने लगा। यह एक महान सफलता का द्वार था, जिसने प्रकृति के अनेक रहस्यमय ताले तोड़ दिये । किन्तु यह सिद्धान्त सभी घटनाओं में प्रयुक्त नहीं हो सका।
भौतिक कारणता के दूसरे पक्ष मेक्सवेल, लारेन्ज़, आइंस्टाइन आदि ने उद्घाटित किये । विद्युत् चुम्बकत्व के बलों में, उनकी घटनाओं में न्यूटन के नियम सफल न हो सके और एक नयी बनियाद डाली गई रेखागणित के आधार पर ही। न्यटन ने रेखागणितीय गमन के आधार पर गुरुत्वाकर्षण के बलों को निकाला और आइंस्टाइन ने चतुर्विभीय रेखागणित के आधार पर गुरुत्वाकर्षण तथा विद्युत् चुम्बकीय बलों को निकाला । खगोलविद्या का आधार यहीं सापेक्षता का सिद्धान्त बना. जिसमें निरपेक्ष का दर्शन केवल सापेक्ष घटनाओं को लेकर होने लगा। अनागत घटनाओं को विगत घटनाओं से सम्बन्धित कर देने के कारण यह एक नियतवाद का प्रयास जैसा था, जिसमें अगले क्षण होने वाली सम्बन्धित घटना ज्ञात की जा सकती थी।
किन्तु सूक्ष्म जगत् का नियम प्लांक द्वारा क्वांटम सिद्धान्त के रूप में कुछ और हो पाया गया । पहले तो यह ज्ञात हुआ कि प्रकृति घड़ी की सुइयों की तरह छोटे झटकों में ही आगे बढ़ती है । आइंस्टाइन ने मेक्स प्लांक के असांतत्य सिद्धान्त में एक और विलक्षण एवं क्रान्तिकारी बात १. देखिये नीथम जे, लिंग विंग, साइन्स एण्ड सिविलिजेशन इन चाइना, केम्ब्रिज, १९५४-खंड १.२.३
इत्यादि।
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