Book Title: Aspect of Jainology Part 2 Pandita Bechardas Doshi
Author(s): M A Dhaky, Sagarmal Jain
Publisher: Parshwanath Vidyapith
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ब्रह्मशान्ति यक्ष
है। ब्रह्मशान्ति के षड्भुज स्वरूप की मूर्तियाँ १२वीं-१३वीं शती ई० में केवल देलवाड़ा के विमलवसही और लूणवसही में बनीं। साहित्यिक परम्परा जहाँ ब्रह्मशान्ति के निरूपण में केवल विष्णु के वामन स्वरूप का प्रभाव प्रदर्शित करती हैं, वहीं मूर्तियाँ ब्रह्मा और वामन स्वरूपों का समवेत प्रभाव दरशाती हैं। यह दूसरी बात है कि मूर्तियों में ब्रह्मा का प्रभाव अधिक मुखर है । हंस तथा करों में पद्म, पुस्तक, जलपात्र और दो उदाहरणों में स्रुक तथा श्मश्रु और मूछों का प्रदर्शन स्पष्टतः ब्रह्मा के स्वरूप से प्रभावित है। दूसरी ओर छत्र विष्णु के वामन-स्वरूप से अनुलक्षित है। पर मूर्तियों में ब्रह्मा के समान ब्रह्मशान्ति को कभी चतुर्मुख नहीं दिखाया गया। साथ ही निर्वाणकलिका के विवरण के अनुरूप कुछ चित्रों के अतिरिक्त ब्रह्मशान्ति को कभी भीषण दर्शनवाला भी नहीं दिखाया गया है । मूर्त उदाहरणों में ब्रह्मशान्ति के साथ पादुका और दण्ड भी नहीं दिखाये गये हैं। इनके अतिरिक्त कुम्भारिया की मूर्तियों तथा पाटण से प्राप्त कल्पसूत्र के चित्रों में ब्रह्मशान्ति के साथ गजवाहन का अङ्कन भी किसी ज्ञात परम्परा से निर्देशित नहीं है । १४१३ ई० के वर्धमान-विद्यापट में ब्रह्मशान्ति का अङ्कन स्पष्टतः विविध तीर्थकल्प को शूलपाणि यक्ष की कथा परम्परा से प्रभावित है। यहाँ ब्रह्मशान्ति का निरूपण स्पष्टतः शिव से प्रभावित रहा है । इस प्रकार ब्रह्मशान्ति के निरूपण में न्यूनाधिक ब्राह्मण धर्म के तीनों प्रमुख देवों-बह्मा, विष्णु, शिव--का प्रभाव देखा जा सकता है।
- व्याख्याता, कला-इतिहास विभाग, काशी हिन्दू विश्वविद्यालय, वाराणसी-५
१. ब्रह्मशान्ति की द्विभुज मूर्ति का अकेला उदाहरण सेवाड़ी के महावीर मन्दिर के गूढ़मण्डप की उत्तरी
भित्ति पर आलेखित है । श्मश्रु और पादुका से युक्त यक्ष के दाहिने हाथ में अक्षमाला और बायें में
जलपात्र हैं । द्रष्टव्य, ढाकी, एम० ए०, पूर्वनिविष्ट, पृ० ३३७-३८ । २. बृहत्संहिता ५७.४१; मत्स्यपुराण २५९.४०-४४ ( मत्स्यपुराण में ब्रह्मा के एक बायें हाथ में दण्ड का
भी उल्लेख हुआ है ); रूपमण्डन २.६-७ । ३. छाणी ताड़पत्र-लघुचित्र । ४. सेवाड़ी के महावीर मन्दिर की मूर्ति अकेला अपवाद है ।
चित्र-सूची चित्र-१: ब्रह्मशान्ति, दक्षिणभित्ति, पूर्वी जैन देवकूलिका, ओसियाँ, ११वीं शती ई० । चित्र-२: ब्रह्मशान्ति (दाएं), पश्चिमी भ्रमिका वितान, महावीर मन्दिर, कुम्भारिया, ११वीं शती ई० । चित्र-३: ब्रह्मशान्ति (दाएँ), पूर्वी भ्रमिका वितान, महावीर मन्दिर, कुम्भारिया, ११वीं शती ई० । चित्र-४: षड्भुज ब्रह्मशान्ति, रंगमण्डप से लगा वायव्य वितान, विमलवसही, १२वीं शती ई०। चित्र-५: षड्भुज ब्रह्मशान्ति, रंगमण्डप से लगा अग्निकोण वितान, लूणवसही, १२३१ ई० ।
आभार-प्रदर्शन चित्र २, ३ अमेरिकन इन्स्टिट्यूट ऑव इण्डियन स्टडीज, वाराणसी तथा चित्र ४ आकियलाजिकल सर्वे ऑव इण्डिया. दिल्ली के सौजन्य से साभार ।
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