Book Title: Aspect of Jainology Part 2 Pandita Bechardas Doshi
Author(s): M A Dhaky, Sagarmal Jain
Publisher: Parshwanath Vidyapith
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मारुतिनन्दन प्रसाद तिवारी
ब्रह्मशान्ति ललितमुद्रा में भद्रासन पर विराजमान हैं। आसन के समीप हंसवाहन उत्कोणं है । उनके करों में वरमुद्रा, स्रुक, पुस्तक एवं जलपात्र हैं।'
ब्रह्मशान्ति की सर्वाधिक मूर्तियाँ कुम्भारिया और देलवाड़ा के जैन मन्दिरों में हैं । ब्रह्मशान्ति के साथ हंस और गजवाहनों के अङ्कन के प्रथम दृष्टान्त इन्हीं स्थलों पर मिलते हैं। कुम्भारिया के महावीर और शान्तिनाथ मन्दिरों (नवचौकी एवं भ्रमिका वितान ) में कुल पांच मूर्तियाँ हैं । ब्रह्मशान्ति के निरूपण में स्वरूपगत विविधता इसी स्थल पर दृष्टिगत होती है। सभी उदाहरणों में ब्रह्मशान्ति कुम्भोदर और चतुर्भुज तथा ललितमुद्रा में स्थित एवं दाढ़ी और मूंछों से युक्त हैं। एक अपवाद के सिवाय वाहन के रूप में यहाँ हमेशा गज का अङ्कन हुआ है। महावीर मन्दिर की पश्चिमी भ्रमिका के एक वितान पर अङ्कित ऋषभनाथ के जीवनदृश्यों में गोमुख यक्ष और अम्बिका यक्षी के साथ ब्रह्मशान्ति भी उत्कीर्ण है (चित्र २)। भद्रासन पर विराजमान ब्रह्मशान्ति के आसन के समक्ष हंस तथा करों में वरमुद्रा, पद्म, पुस्तक एवं जलपात्र हैं। अन्य चार उदाहरणों में करण्ड-मुकुट, छन्नवीर, उपवीत आदि से मण्डित यक्ष के हाथों में वरद् (या वरदाक्ष), छत्र, पुस्तक और जलपात्र (या फल) हैं ( चित्र ३)। शान्तिनाथ मन्दिर को पश्चिमी भ्रमिका के वितान की मूर्ति में पुस्तक ऊर्ध्व दक्षिण कर में है और वाम करों में छत्र और पद्म प्रदर्शित हैं।'
विमलवसही में ब्रह्मशान्ति की तीन मूर्तियाँ हैं। इनमें यक्ष चतुर्भुज और षड्भुज हैं। चतुर्भुज मूर्तियाँ देवकुलिका ५४ के समक्ष की भ्रमिका तथा नवचौकी के वितानों पर उत्कीर्ण हैं। पहले उदाहरण में ब्रह्मशान्ति की मूर्ति सुपार्श्वनाथ की मूर्ति के ऊपर अङ्कित है। घटोदर और श्मश्रुयुक्त ब्रह्मशान्ति यहां ललितासन में हैं और उनके करों में वरद्, पद्म, पुस्तक और जलपात्र हैं। भद्रासन पर विराजमान यक्ष के पावों में दो चामरधारिणियों का भी अङ्कन हुआ है। दूसरी मूर्ति में भी यक्ष भद्रासन पर ललितमुद्रा में आसीन हैं और उनके हाथों में अक्षमाला, पुस्तक, छत्र और १. महावीर मन्दिर ( ८वीं शती ई० ) के गूढ़मण्डप पर दो ऐसी द्विभुज स्थानक मूर्तियाँ है, जिनकी ठिगनी
शरीर रचना तथा उनका घटोदर एवं यज्ञोपवीत से युक्त होना, उनके ब्रह्मशान्ति यक्ष होने की सम्भावना
व्यक्त करता है। इन मूर्तियों के करों में जलपात्र और पुस्तक प्रदर्शित है। २. शान्तिनाथ मन्दिर की भ्रमिका एवं नवचौकी के वितानों, और नवचौकी की पीठ पर यक्ष की तीन.
तथा महावीर मन्दिर के पूर्व और पश्चिम की भ्रमिका के वितानों पर दो मतियाँ हैं। ३. शान्तिनाथ मन्दिर की पश्चिमी भ्रमिका के एक वितान की मूर्ति में ब्रह्मशान्ति महावीर के जीवनदृश्यों के
मध्य उत्कीर्ण हैं । यहाँ ब्रह्मशान्ति के साथ यक्षी भी आमूर्तित है । सम्भव है यह महावीर के यक्ष-यक्षी का अङ्कन हो। महावीर के पारम्परिक यक्ष ( मातङ ग ) के स्थान पर यहाँ ब्रह्मशान्ति का अङ्कन स्वतन्त्र यक्ष के साथ ही ब्रह्मशान्ति की महावीर के यक्ष के रूप में कुम्भारिया में निरूपण की परम्परा
को भी स्पष्ट करता है। ४. सादरी स्थित पार्श्वनाथ (पूर्वी शिखर ) और नाड्लाई स्थित शान्तिनाथ (पूर्वी वेदिबन्ध ) मन्दिरों
( पाली, राजस्थान, ११वीं शती ई०) की दो चतुर्भुज मूर्तियों की सम्भावित पहचान भी ब्रह्मशान्ति से की जा सकती है । यक्ष के हाथों में वरमुद्रा, छत्र ( या पद्म ), पद्म और जलपात्र प्रदर्शित हुए हैं । इन मूर्तियों में वाहन का अङ्कन नहीं हुआ है ।
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