Book Title: Aspect of Jainology Part 2 Pandita Bechardas Doshi
Author(s): M A Dhaky, Sagarmal Jain
Publisher: Parshwanath Vidyapith
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क्या बोटिक दिगम्बर हैं ?
७३ शीलाङ्क ने अन्यत्र पिच्छक का उल्लेख किया भी है-'बोटिकानामपि पिच्छकादिपरिग्रहात् ।' बोटिकों के उपकरण की चर्चा, जो विशेषावश्यक भाष्य के बाद हुई है, वह सम्भवतः दिगम्बर और बोटिक का भेद न करके हुई है। यह भी सम्भव है कि कालक्रम से बोटिकों का हो रूपान्तर दिगम्बर-सम्प्रदाय में है
इस समग्र चर्चा से इतना तो स्पष्ट होता ही है कि बोटिक मूलतः दिगम्बर नहीं थे, क्योंकि स्त्री-मुक्ति के निषेध को चर्चा हमें सर्वप्रथम आचार्य कुन्दकुन्द में मिलती है। यद्यपि उनका समय विवादास्पद है, फिर भी मेरा अपना यह निश्चित मत है कि आचार्य कुन्दकुन्द आचार्य उमास्वाति के पूर्व नहीं हुए हैं। इसको सिद्ध करने का प्रयत्न मैंने अपनी न्यायावतार वृत्ति की प्रस्तावना में दोनों आचार्यों के जैन दर्शन सम्बन्धी मन्तव्यों की तुलना करके किया है। इस समग्र चर्चा से दो फलित निकलते हैं-प्रथम तो यह कि श्वेताम्बर ग्रन्थों में बोटिक नाम से जिस सम्प्रदाय का उल्लेख हुआ है, वह दिगम्बर-सम्प्रदाय से भिन्न है और जिसे अन्यत्र यापनीय के नाम से पहचाना जाता है। दूसरे दिगम्बर-सम्प्रदाय, जो स्त्री-मुक्ति का निषेध करता है, वह या तो बोटिकों का ही परवर्ती विकास है, या फिर उससे प्रारम्भिक श्वेताम्बर आचार्य परिचित नहीं थे। क्योंकि प्राचीन नियुक्तियों एवं भाष्यों से ऐसी मान्यता की उपस्थिति के न तो कोई संकेत ही मिलते हैं और न उसके खण्डन का ही कोई प्रयास देखा जाता है।
८, ओपेरा सोसायटी, अहमदाबाद-३८०००७
१. आचाराङ्ग, शीलाङ्क टीका, पृ० २०७ ।
सन्दर्भ-सूची १. आवश्यक चूर्णि : प्रका० ऋषभदेवजी केसरीमलजी, रतलाम, भाग-१, १९२४; भाग-२ । २. विशेषावश्यक भाष्य : भाग-२, ला० द० ग्रन्थमाला, १९६४ । ३. श्वेताम्बर-दिगम्बर : मुनिदर्शनविजय, १९४३ । ४. निशीथसूत्र
:: भाग-४, सन्मति ज्ञानपीठ, आगरा, १९६० । ५. आवश्यक सूत्र : हरिभद्र टीका, आगमोदय समिति, १९१५ । ६. विशेषावश्यक भाष्य हेमचन्द्र टीका, यशोविजय ग्रन्थमाला, बनारस, वीर सं० २४३९ । ७. विशेषावश्यक भाष्य : कोट्याचार्य टीका, भाग-२, ऋषभदेवजी केसरीमलजी, रतलाम, १९३७ । ८. उत्तराध्ययन : शाक्याचार्य टीका, देवचन्द्रलाल भाई, १९१६ । ९. स्थानाङ्गसूत्र : अभयदेव टीका, आगमोदय समिति, १९१५ । १०. आचाराङ्ग चूर्णि : ऋषभदेव केसरीमलजी, १९४१ । ११. आचाराङ्ग : शीलाङ्क टीका, आगमोदय समिति । १२. श्रमण भगवान महावीर : कल्याणविजयजी, श्री० क० वि० शास्त्रसंग्रह समिति, जालोर, वि० सं०
१९९८ ।
गीलाल
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