Book Title: Aspect of Jainology Part 2 Pandita Bechardas Doshi
Author(s): M A Dhaky, Sagarmal Jain
Publisher: Parshwanath Vidyapith
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पूर्व मध्यकालीन भारतीय न्याय एवं दण्ड व्यवस्था
से देखता हो, अनुचित स्थान पर रहता हो, पूर्व-कर्म से अपराधी हो, जाति आदि छिपाता हो, सुरा और सुन्दरी के सम्पर्क में रहता हो, स्वर बदल कर बात करता हो, अधिक खर्च करता हो, पर आय के स्रोत का पता न हो, खोई वस्तु या पुराना माल बेचने वाला हो, दूसरे के घर के पास वेष बदल कर रहता हो, उसे चोर समझना चाहिये ।' स्मृतियों में चोरी करने वालों को कठोर दण्ड का भागी बताया गया है । बहुमूल्य रत्नों की चोरी के लिए मनु विधान किया है। सेंध लगाकर चोरी करने वालों को शूली की सजा दिये जाने मनुस्मृति में एक अन्य स्थान पर राजकोष एवं मन्दिर की वस्तु, अश्व, रथ, गज करने वालों को मृत्यु का भागी बताया गया है । * स्मृतियों में चोर के कार्य में वाले को भी चोर के समान दण्ड दिये जाने का उल्लेख है ।
१. याज्ञवल्क्य स्मृति, 21226-68; नारद परिशिष्ट, 9112
२. मनुस्मृति 81323
४. वही, 9180 ।
पुलिस विभाग - दण्डपाशिक
समराइच्चकहा, कुवलयमालाकहा और कुमारपाल प्रतिबोध आदि ग्रन्थों में पुलिस विभाग के एक प्रमुख अधिकारी को दण्डपाशिक कहा गया है। उसकी नियुक्ति राजा के द्वारा की जाती थी । वह अपराध का सतर्कता पूर्वक निरीक्षण करने के बाद समुचित दण्ड देता था । वह अपराधियों का पता लगाता था और अपराध सिद्ध होने पर दण्ड की आज्ञा देता था। मुकदमें दण्डपाशिक के बाद मन्त्रिमण्डल में लाये जाते थे और तत्पश्चात् राजा उस पर अन्तिम निर्णय देता था । ' दण्डपाशिक ( चोरों को पकड़ने का फन्दा धारण करने वाले ) का उल्लेख पाल, परमार तथा प्रतिहार के अभिलेखों में प्राप्त होता है । " उत्तर भारत में पूर्व मध्यकालीन राजाओं के केन्द्रीय प्रशासन में दण्डपाशिक, महाप्रतिहार, दण्डनायक एवं बलाधिकृत जैसे प्रमुख अधिकारी होते थे । ये अपने-अपने विभाग के प्रमुख अथवा अध्यक्ष होते थे । १° दण्डपाशिक पुलिस विभाग का एक अधिकारी था, जो विभिन्न भागों में नियुक्त रहते थे तथा अपराधियों को दण्ड देने का कार्य करते थे । दण्डपाशिक दण्डभोगिक के समान था, जिसे पुलिस मजिस्ट्रेट कहा जा सकता है । ""
३. वही, 91276 ।
५. वही, 91271; याज्ञ०, 21286 1
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E, 4, 358-59-60; 6, 508-520-523; 7, 714, 715-716, 718; 8, 847-48; 9, 957; देखिए - इंडि० हिस्टा० क्वार्ट०, दिसम्बर 1960, पृ० 266 ।
७. समराइच्चकहा, 6, 597 98 99; देखिए - डी सी० सरकार — इंडियन इपिग्रैफिकल ग्लासरीज, पृ० 81 ।
मृत्यु दण्ड का का निर्देश है।
आदि की चोरी सहायता करने
८. समराइच्चकहा, 8, 84950 1
९. हिस्ट्री आफ बंगाल, भाग 1, पृ० 285; इपिग्रेफिया इंडिका, 19, पृ० 73, 9, पृ० 6, देखिए - सिन्धी जैन ग्रन्थमाला, 1, पृ० 77; डी० सी० सरकार — इण्डियन इपिग्रेफी - पृ० 76
१०. इपिग्रेफिया इण्डिका, 13, पृ० 339
११. दी एज आफ इम्पीरियल कन्नौज, पू० 240
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