Book Title: Aspect of Jainology Part 2 Pandita Bechardas Doshi
Author(s): M A Dhaky, Sagarmal Jain
Publisher: Parshwanath Vidyapith
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दलसुख मालवणिया का विशेषावश्यक भाष्य है। उसमें आवश्यकचूर्णिगत शिवभूति का कोई परिचय नहीं है, केवल उनकी उपधि के विषय में गुरु के साथ हुई चर्चा का विवरण है। इससे इतना स्पष्ट होता है कि कथा के तन्तु की सम्पूर्ति आवश्यक चूर्णि में की गई है । हमें यहाँ कथा से कोई मतलब नहीं है, किन्तु गुरु के साथ उनकी जो चर्चा हुई, उसी से है । निम्न बातें आवश्यकचूर्णि से फलित होती हैं, जो शिवभूति को मान्य थीं
१. जिनकल्प का विच्छेद जो माना गया था, उसे शिवभूति अस्वीकार करते हैं ।
२. उपधि-परिग्रह का त्याग और अचेलता का स्वीकार, अर्थात् वस्त्र आदि किसी प्रकार की उपधि को वे परिग्रह मानते थे । अतएव वे नग्न रहते थे।
३. उनकी बहन उत्तरा ने भी प्रथम तो वस्त्र का त्याग किया, किन्तु गणिका द्वारा दिया गया वस्त्र वह रखे, क्योंकि वह देव का दिया हुआ है-ऐसा मानकर ऐसी अनुमति शिवभूति ने दी। अतएव उनके संघ में आर्याएँ-साध्वियाँ वस्त्र रख सकती थीं--ऐसा फलित होता है।
४. साध्वी जब वस्त्र रख सकती थी तो स्त्री-निर्वाण के निषेध को चर्चा को कोई अवकाश ही नहीं था।
विशेषावश्यक भाष्य में शिवभूति की गुरु के साथ जो चर्चा हुई, उसका विस्तृत विवरण है। उस विवरण के आधार पर निम्न बातें शिवभूति के विषय में कही जा सकती हैं
१. समर्थ के लिए जिनकल्प का विच्छेद नहीं मानना चाहिए। २. जिनेन्द्र अचेल थे, अतएव मुनि को भी उनका अनुसरण करना चाहिए।
३. मुनि को अचेल परोषह जीतना जरूरी है, अतएव नग्न रहना आवश्यक है। वस्त्रादि परिग्रह कषाय के हेतु हैं, अतएव परिग्रह का त्याग आवश्यक है। निर्ग्रन्थ का ग्रन्थहीन होना जरूरी है।
४. आगम को वह मानता था । आचारांङ्ग के सूत्र को 'उभयसम्मत' कहा है । फिर भी उसकी बात को माना नहीं है ।
५. पात्र की आवश्यकता भी अस्वीकृत है। ६. अचेल का अर्थ अल्पचेल भी इसे मान्य नहीं है।
७. अचेलक होते हुए भी तीर्थंकर दीक्षा के समय वस्त्रधारी होते थे, क्योंकि यह दिखाना था कि साधु वस्त्रधारी भी हो सकते थे-यह तर्क भी शिवभूति को मान्य नहीं था।
८. साध्वी को एक वस्त्र की छूट थी।
विशेषावश्यक की विस्तृत चर्चा में विवाद के विषय केवल वस्त्र और पात्र हैं। इसमें स्त्री-मुक्ति निषेध की चर्चा नहीं है। दिगम्बर-सम्प्रदाय में वस्त्र-पात्र के अलावा स्त्री-मुक्ति का भी निषेध है। अतएव जिनभद्र तक के समय में बोटिक को दिगम्बर-सम्प्रदाय के अन्तर्गत नहीं किया जा सकता। १. विशेषावश्यक भाष्य, गाथा ३०३२-९२ ।
२. आवश्यकचूर्णि, पृ० ४२७ । ३. विशेषावश्यक भाष्य, गाथा ३०३६ ।
४. आचाराङ्ग, सत्र १३४ । ५. विशेषावश्यक भाष्य, गाथा ३०५४ ।
६. वही, गाथा ३०६२ ।
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