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उष्टात्
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उष्ट्रात् - IV. iii. 154 (षष्ठीसमर्थ) उष्ट्र प्रातिपदिक से (विकार और अवयव अर्थों में वुञ् प्रत्यय होता है)। ...उष्णाभ्याम् -V.ii. 72
देखें-शीतोष्णाभ्याम् V. 1.72 ...उष्णिक्... - III. ii. 59
देखें-ऋत्विम्दधक III. ii. 59 ...उष्णिके -v.ii.71
देखें-ब्राह्मणकोष्णिके V.ii.71 उष्णे-VI. iii. 106
उष्ण शब्द उत्तरपद रहते (कु शब्द को कव आदेश भी होता है,एवं विकल्प से का आदेश भी होता है)।
...उस्... - III. iv. 82
देखें- णलतुसुस III. iv. 82 . .... ...उस्... - VII. iii. 51
देखें- इसुसुक्तान्तात् VII. iii. 51 . . उसि - VI.i. 93
(अपदान्त अवर्ण से उत्तर) उस् परे रहते (पूर्व पर के स्थान में पररूप एकादेश होता है)। ...उसो: - VIII. iii. 44 .
देखें-इसुसो: VIII. iii. 44
ऊ... -I.ii. 26
...ऊठ -VI. iv. 19 देखें - व्युपधात् I. ii. 26
देखें-शूठ VI. iv. 19 ऊ... -I.ii. 27
ऊ - VI. iv. 132 देखें-अकाल: I. ii. 27
(वाह अन्तवाले भसज्ञक अङ्ग को सम्प्रसारणसञ्जक) ऊ...-I. iv.3
ऊळ होता है। देखें-यूI. iv.3 अक: -III. I. 165
...ऊठ्सु - VI. 1. 86 (जागृ धातु से वर्तमान काल में) ऊक प्रत्यय होता है. देखें- एत्येपत्यसु VI.1.86 (तच्छीलादि कर्ता हो तो)।
अडिदम्पदाधप्पुप्रैधुभ्य: - VI. 1. 168 अकाल -I.ii. 27
ऊठ, इदम्,पदादि, अप,पुम,रै तथा दिव् शब्दों से उत्तर उकाल,ऊकाल तथा उ३काल अर्थात् एकमात्रिक द्विमा- (सर्वनामस्थानभिन्न विभक्ति उदात्त होती है)। त्रिक तथा त्रिमात्रिक (अच् की यथासंख्य करके हस्व,दीर्घ
का यथासख्य करक हस्व,दाष ...ऊत् ...-I.. 11 और प्लुत संज्ञा होती है)।
देखें - ईदूदेत् I..11 अ -IV.i.66
ऊत् -VI. iii.97 (उकारान्त मनुष्यजातिवाची प्रातिपदिकों से स्त्रीलिंग में)
(अनु से उत्तर अप् शब्द कों) ऊकारादेश होता है, देश ऊङ् प्रत्यय होता है।
को कहने में)। ऊ -VI. 1. 169
ऊत् - VI. iv. 89 देखें- अधात्वो: VI. I. 169
(गोह अङ्ग की उपधा को) ऊकारादेश होता है, (अजादि उड्यात्वोः -VI.i. 169
प्रत्यय परे रहते)। ऊङ् तथा धातु का (जो उदात्त के स्थान में हुआ यण, हल पूर्ववाला हो तो उससे उत्तर अजादि सर्वनामस्थान
ऊति... -III. ili.97 भिन्न विभक्ति को उदात्त नहीं होता)।
देखें- ऊतियूति III. iii. 97 ऊद.. -VI. 1. 165
...ऊति... -VI. iii.98 देखें-ऊडिदम VI.1.165
देखें- आशीराशास्था. VI. 1.98