Book Title: Ashtadhyayi Padanukram Kosh
Author(s): Avanindar Kumar
Publisher: Parimal Publication

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Page 597
________________ 579 हस्व... -I. ii. 27 देखें-हस्वदीर्घप्लुतः .ii. 27. हुस्व.. -VI.i. 170 देखें-हस्वनुड्भ्याम् VI. 1. 170 ...हस्व... - VI. iv. 156 देखें- स्थूलदूOVI. iv. 156 ह्रस्व.. -VII.1.54 देखें-हस्वनधाय VII. I.54 हस्क-1. 1.46 (नपुंसकलिङ्ग में वर्तमान प्रातपिदिक को) हस्व हो जाता हो-II. 11.3 - ''पात के (अनभिहित कर्म में द्वितीया तथा ततीया विभक्ति होती है, वेदविषय में)। ..हो-VII. 1. 104 देखें-तिहो VII. 1. 104 ..हो.-VIL.iv.62 देखें-कुहोVII. iv.62 ...होत... -VI. iv. 11 देखें-अप्तन्त VI. iv. 11 मेवार-V.1.134 (षष्ठीसमर्थ) ऋत्विविशेषवाची प्रातिपदिकों से (भाव और कर्म अर्थों में छ प्रत्यय होता है)। है-II.1.83 हि परे रहते (हलन्त से उत्तर श्ना के स्थान में शानच आदेश होता है)। हौ-VI. iv. 35 (शास् अङग के स्थान में) हि परे रहते (शा आदेश हो ' जाता है)। हो- VI. iv. 117 (ओहाक् अङ्ग को विकल्प से आकारादेश होता है तथा इकार आदेश भी विकल्प से होता है) हि परे रहते। है-VI.V. 119 (सक अङ्गएवम् अस को एकारादेश तथा अभ्यास '' का लोप होता है) हि (डित) परे रहते। .....-IN.34 देखें-श्लाघस्थाशपाम् I. iv.34 हम्यन्तक्षणश्वसजागृणिश्व्येदिताम्-VII. iv.5 हकारान्त,मकारान्त तथा यकारान्त अङ्गों को एवं क्षण, श्वस.जाग.णि.श्वि तथा एदित अङ्गों को (परस्मैपद-परक इडादि सिच् परे रहते वृद्धि नहीं होती)। ...यस्.. -IV.ii. 104 देखें-ऐक्मोह:o IV. 1. 104 ...हो.-VII. 1.35 देखें-तुहो: VII.1.35 ...हदोत्तरपदात्-V. 1. 141 देखें-कन्यापलद V.II. 141 हुस्व-I. iv.6 हस्व (स्व्याख्य इकारान्त, उकारान्त) शब्द (तथा इयङ्, उवङ्-स्थानी ईकारान्त ऊकारान्त स्त्र्याख्य शब्द भी डित् प्रत्यय के परे रहते विकल्प से नदीसंज्ञक होते हैं)। हस्व-VL.I. 128 (असवर्ण अच् परे हो तो इक को शाकल्य आचार्य के मत में प्रकृतिभाव हो जाता है तथा उस इक के स्थान में) ह्रस्व (भी) हो जाता है। हस्क-VI. iii. 42 (भाषितपुंस्क शब्द से उत्तर ङ्यन्त अनेकाच शब्द को) हस्व हो जाता है; (ष,रूप, कल्प, चेलद, बुव, गोत्र, मत तथा हत शब्दों के परे रहते)। हस्क-VI. iii.60 (डी अन्त में नहीं है जिसके, ऐसा जो इक अन्तवाला शब्द,उसको गालव आचार्य के मत में विकल्प से) हस्व होता है, (उत्तरपद परे रहते)। ह्रस्व-VI. Iv.72 मित्सजक अङ्ग की उपधा को) हस्व होता है,णि परे रहते। हस्व-VI. iv.94 (खच्परक णि परे रहते अङ्ग की उपधा को) हस्व होता हस्व-VII. 1.80 (पूज् इत्यादि अङ्गों को शित् प्रत्यय परे रहते) हस्व होता है।

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