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सनि-VI. iv. 16
...सनो:-I. 1.92 (अजन्त अङ्ग तथा हन एवं गम् अङ्ग को झलादि) देखें-स्यसनो: I. iil. 92 सन् परे रहने पर (दीर्घ होता है)।
...सनो:-II. iv. 37 सनि-VII. ii. 12
देखें- लुड्सनो: II. iv. 37 (ग्रह, गुह तथा इगन्त अङ्ग को) सन प्रत्यय परे रहते ...सनो:- VIII. iii. 117 (इट का आगम नहीं होता है)।
देखें-स्यसनो: VIII. iii. 117 सनि-VII. ii. 41
सनोते:- VIII. iii. 108 वृतथा ऋकारान्त धातुओं से उत्तर सन् आर्धधातुक को (अनकारान्त) सन् धातु के (सकार को वेदविषय में विकल्प से इट् आगम होता है)।
मूर्धन्य आदेश होता है)। सनि-VII. ii. 49
सन्तापादिभ्यः-v.i. 100 (इव अन्त में है जिनके, उनसे तथा ऋधु वृद्धौ','प्रस्ज (चतुर्थीसमर्थ) सन्तापादि प्रातिपदिकों से (शक्त है' पाके', 'दम्भु दम्भे" श्रिज् सेवायाम्"स्वृ शब्दोपतापयो, अर्थ में यथाविहित ठञ् प्रत्यय होता है)। 'य मिश्रणे', 'ऊर्ण आच्छादने', 'भृ''भरणे',ज्ञपि,सन् सन्धिवेलादि...- IV. iii. 16
-इन धातुओं से) उत्तर सन् को (विकल्प से इट् आगम देखें-सन्धिवेलाचतुनक्षत्रेभ्यः IV. iii. 16 होता है)।
सन्धिवेलातुनक्षत्रेभ्यः- IV. iii. 16 सनि- VII. ii. 74
सन्धिवेलादिगण पठित शब्दों से, ऋतुवाची एवं नक्ष(स्मिङ्, पू,ऋ, अन, अशू-इन अङ्गों के) सन् को
अजू, अशू इन अङ्गा का सन्का . त्रवाची शब्दों से (अण् प्रत्यय होता है)। (इट् आगम होता है)।
सन्नतर:-I.ii. 40 सनि-VII. iv. 54 (मी,मा, तथा घुसज्ञक एवं रभ, डुलभष, शक्ल, पत्ल
(उदात्तपरक तथा स्वरितपरक अनुदात्त को) सन्नतर= और पद अगों के अच के स्थान में इस आदेश होता
अनुदात्ततर (आदेश हो जाता है)। है, सकारादि) सन् के परे रहते।
सन्निकर्ष:-I. iv. 108 सनि-VII. iv.79
- (वर्षों के अतिशयित) समीपता की (संहिता संज्ञा होती । सन् परे रहते (अकारान्त अभ्यास को इत्व होता है)। सनिससनिवांसम्-VII. ii. 69
सन्निविश्य:- VII. ii. 24 - 'सनिससनिवांसम्- यह शब्द निपातन किया जाता
सम,नि तथा वि उपसर्ग से उत्तर (अर्दु धातु को निष्ठा
परे रहते इट् आगम नहीं होता)। ...सनीड...-VI. ii. 23
सन्महत्परमोत्तमोत्कृष्टाः-II. 1. 60 देखें- संविधसनीड VI. ii. 23
सत्,महत्, परम,उत्तम, उत्कृष्ट -ये शब्द (समानाधि...सनुतात्- IV. iv. 114
करण पूज्यवाची सुबन्तों के साथ विकल्प से समास को देखें-सगर्भसयूथ IV. iv. 114
प्राप्त होते हैं और वह तत्पुरुष समास होता है)। सनुम-VIII. iv. 31
सन्यडो: -VI.i.9 (उपसर्ग में स्थित निमित्त से उत्तर इच आदि वाला) जो सन्नन्त तथा यङन्त धातु के (अभ्यास अवयव प्रथम नुम-सहित (हलन्त धातु) उससे विहित (जो कृत् प्रत्यय, एकाच तथा अजादि के द्वितीय एकाच को द्वित्व होता तत्स्थ नकार को अच् से उत्तर णकार आदेश होता है)। है)।