Book Title: Ashtadhyayi Padanukram Kosh
Author(s): Avanindar Kumar
Publisher: Parimal Publication

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Page 562
________________ ...संवत्सरात् 544 ...संवत्सरात्-V.1.86 देखें- राज्यहस्संवत्सo V. 1.86 ...संवत्सरात्-V.1.57 देखें- शतादिमास V. 1.57 संशयम्-V.i.72 (द्वितीयासमर्थ) संशय प्रातिपदिक से (प्राप्त हो गया' अर्थ में यथाविहित ठत्र प्रत्यय होता है)। संश्चडो:-II. iv. 51 सन-परक,चपरक (णिच) परे रहते भी (इङ् को गाङ् आदेश विकल्प से होता है)। संश्चडो:- VI. 1. 31 सन्परक तथा चङ्परक (णि) के परे रहते (भी टुओश्वि धातु को विकल्प से सम्प्रसारण हो जाता है)। संसनिष्यदत्-VII. iv.65 संसनिष्यदत शब्द वेदविषय में निपातन किया जाता ...संस्तु...-III.i. 141 देखें-श्याव्यधाo III.i. 141 ...संहारा:-III. iii. 122 देखें- अध्यायन्याय III. iii. 122 संहित...- IV.i.70 देखें- संहितशफलक्षण IV.i. 70 संहितशफलक्षणवामादेः- IV.i.70 संहित, शफ, लक्षण, वाम आदि वाले (ऊरु उत्तरपद) प्रातिपदिकों से (भी स्त्रीलिङ्ग में ऊङ् प्रत्यय होता है)। संहिता-I. iv. 108 (वर्णों की अतिशयित समीपता की) संहिता संज्ञा होती .. ...संसृज..-III. 1. 142 देखें-सम्पचानुरुध III. ii. 142 संसृष्टे-IV.iv. 22 (तृतीयासमर्थ प्रातिपदिक से) मिला हुआ अर्थ में (ठक प्रत्यय होता है)। संस्कृतम्- IV. 1. 15 (सप्तमीसमर्थ प्रातिपदिक से) संस्कार किया गया' अर्थ में (यथाविहित प्रत्यय होता है. यदि वह संस्कृत पदार्थ संहितायाम्-I.ii. 39 संहिताविषय में (स्वरित से उत्तर अनुदात्तों को एकश्रुति होती है)। संहितायाम्-VI.i.70 दात्तं पदमेकवर्जम्' VI. 1. 152 सूत्रपर्यन्त कथित कार्य) संहिता के विषय में होंगे। , संहितायाम्- VI. ii. 113 ‘संहितायाम्' यह अधिकारसूत्र है, पाद की समाप्तिपर्यन्त जायेगा। संहितायाम्-VIII. 1. 108 (उनके अर्थात प्लत करने के प्रसङग में एच के उत्तरार्ध को जो इकार, उकार पूर्वसूत्र से विधान कर आये हैं, उन इकार, उकार के स्थान में क्रमशः य, व् आदेश हो जाते हैं, अच् परे रहते) सन्धि के विषय में। सा-I. iii. 55 तृतीया विभक्ति से युक्त सम-पूर्वक दाण धातु से भी आत्मनेपद होता है, यदि) वह तृतीया (चतुर्थी के अर्थ में हो तो)। सा-II. iii. 48 वह (सम्बोधन में विहित प्रथमा आमन्त्रित'-संज्ञक होती हो)। संस्कृतम्-IV.iv.3 (तृतीयासमर्थ प्रातिपदिक से) 'संस्कार किया हुआ'अर्थ में (ढक् प्रत्यय होता है)। संस्कृतम्- IV. iv. 134 (ततीयासमर्थ अप प्रातिपदिक से) संस्कृत अर्थ में (यत् प्रत्यय होता है, वेदविषय में)। ...संस्थानेषु-IV.iv.72 देखें- कठिनान्तप्रस्तार• IV.iv.72 संस्पर्शात्- II. II. 116 (जिस कर्म के) संस्पर्श से (कर्ता को शरीर का सुख उत्पन्न हो, ऐसे कर्म के उपपद रहते भी धातु से ल्युट् प्रत्यय होता है)। सा-IV.ii. 20 प्रथमासमर्थ (पौर्णमासी विशेषवाची प्रातिपदिक से सप्तम्यर्थ = अधिकरण अभिधेय होने पर यथाविहित अण् प्रत्यय होता है)।

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