Book Title: Ashtadhyayi Padanukram Kosh
Author(s): Avanindar Kumar
Publisher: Parimal Publication

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Page 571
________________ ...सुपूर्वस्य 553 सुसर्वार्थात् ...सुपूर्वस्य - V. iv. 140 ...सुरा... -II. iv.25 . देखे-संख्यासुपूर्वस्य V. iv. 140 देखें- सेनासुरादाया. II. iv. 25 सुप्तिङन्तम् - I. iv. 94 सुलुक्पूर्वसवर्णाच्छेयाडाड्यायाजाल- VII.i. 39 सुबन्त तथा तिडन्त शब्दरूप (पदसंज्ञक होते हैं)। (सुपों के स्थान में) सु, लुक, पूर्वसवर्ण, आ, आत.शे. सुप्पितौ-III.1.4 या,डा,ड्या,याच,आल् आदेश होते हैं, वेद-विषय में)। • सु आदि प्रत्यय और पित् = जिनके प् की इत्संज्ञा है, सुलोप:- VI. I. 128 वे प्रत्यय (अनुदात्त होते है)। (ककार जिनमें नहीं है, तथा जो नञ्-समास में वर्तमान सुप्रात... - V. iv. 120 नहीं हैं, ऐसे एतत् तथा तत् शब्दों के) सु का लोप हो देखें- सुप्रातसुश्क. V. iv. 120 जाता है, (हल् परे रहते, संहिता के विषय में)। सुप्रातसुश्वसुदिवशारिकुशचतुरस्त्रैणीपदाजपदप्रोष्ठपदा:- सुलोप- VII. ii. 107 v. iv. 120 (अदस् अङ्ग को सु परे रहते औ आदेश तथा) सु का सुप्रात, सुश्व, सुदिव,शारिकुक्ष, चतुरश्र, एणीपद, अज लोप होता है। पद, प्रोष्ठपद-बहुव्रीहि समास वाले ये शब्द (अच्प्रत्ययान्त निपातन किये जाते हैं)। ...सुवति...- VIII. 1.65 देखें- सुनोतिसुवतिVIII. Iii. 65 सुस्वरसम्शातुम्विधिषु- VIII. 1.2 सुवास्त्वादिभ्यः - Vi.76 सुप्-विधि, स्वरविधि, सञ्जाविधि तथा (कृत-विषयक) . सुवास्तु आदि प्रातिपदिकों से (चातुरर्थिक अण प्रत्यय तुक की विधि करने में (नकार का लोप असिद्ध होता होता है)। सुविनिर्दुW: - VIII. II.88 सुब्रह्मण्यायाम्-I. I. 37 सुब्रह्मण्यानामक निगदविशेष में (एक श्रुति नहीं होती, सु, वि, निर् तथा दुर् से उत्तर (सुपि, सूति तथा सम के किन्तु उस निगद में जो स्वरित,उसको उदात्त तो हो जाता सकार को मूर्धन्यादेश होता है)। ...सुवो:- VII. iii. 88 'देखें- भूसुवो: VII. iii. 88 ..सुभग...-III. 1.56 देखें-आयसुभग III. 1.56 ...सुश्व.. - V. iv. 120 ....सुंज्य-V. iv. 121 देखें- सुप्रातसुश्क V. iv. 120 देखें-नन्दुःसुभ्यः V. iv. 121 सुपामादिषु-VIII. Ill. 38 ..सुभ्याम् -VI. II. 172 सुषामादि शब्दों में (वर्तमान सकार को भी मूर्धन्य आदेदेखें-नसुभ्याम् VI. 1. 172 श होता है)। ..सुमङ्गल..-IV.i. 30 ....सुपि.. - V. ii. 107 देखें- केवलमामक IV.I. 30 देखें-उपसुषिःv.ii. 107 -सुम्नयो:-VII. iv. 38 ...सुषु-III. Iii. 126 देखें-देवसुम्नयोः VII. iv. 38 सुयो -III. 1. 103 देखें-ईप:सुषु III. iii. 126 सुसर्वार्थात् - VII. III. 12 पुल तथा यज् धातु से (भूतकाल में वनिप् प्रत्यय होता स,सर्व तथा अर्ध शब्द से उत्तर (जनपदवाची उत्तरपद शब्द के अचों में आदि अच् को जित, णित् तथा कित् ...सुरभिय-V.N. 135 .... .. तद्धित प्रत्यय परे रहते वृद्धि होती है)। देखें-अपूतिः .. 135

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