Book Title: Ashtadhyayi Padanukram Kosh
Author(s): Avanindar Kumar
Publisher: Parimal Publication

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Page 591
________________ 573 हलि ...हलन्तस्य - VII. ii.3 देखें-बदवज VII. 1.3 हलन्तात्-I. ii. 10 (इक् के) समीप जो हल्, उससे परे (भी झलादि सन् कित्वत् होता है)। .हलसीरात्- IV. iii. 123 (षष्ठीसमर्थ) हल और सीर शब्दों से (इदम्' अर्थ में ठक् प्रत्यय होता है)। हल = खेत जोतने का प्रधान उपकरण, लांगल। सीर = हल,सूर्य, आक का पौधा। हलसीरात्- IV.iv.81 (द्वितीयासमर्थ) हल और सीर प्रातिपदिकों से (ढोता है' अर्थ में ठक् प्रत्यय होता है)। हलसूकरयो:-III. ii. 183 (पूज् धातु से करण कारक में ष्ट्रन् प्रत्यय होता है, यदि वह करण कारक) हल तथा सूकर का अवयव हो तो। ...हलात्-IV. iv.97 देखें- मतजनहलात् IV. iv.97 • हलादिः-VI.i. 173 (षट्सजक शब्दों से उत्तर तथा त्रि,चतुर शब्दों से उत्तर) हलादि विभक्ति (उदात्त होती है)। हलादिः - VII. iv. 60 (अभ्यास का) आदि हल् (शेष रहता है)। हलादेः-I. ii. 26 (इकार, उकार उपधावाली;रलन्त एवं) हलादि धातुओं से परे (सेट् सन् और सेट् क्त्वा प्रत्यय विकल्प से कित् नहीं होते हैं)। हलादेः- III. I. 22 . हलादि (जो एकाच धातु, उस) से (पुनः पुनः होने या अतिशयता व्यक्त होने पर यङ् प्रत्यय होता है)। हलादेः-III. ii. 149 हल् आदि वाली (अनुदात्तेत्) धातुओं से (तच्छीलादि कर्ता हों तो वर्तमानकाल में यच प्रत्यय होता है)। हलादेः- VI. iv. 161 (भसज्जक) हल आदि वाले अङ्ग के (लघु ऋकार के स्थान में र आदेश होता है; इष्ठन. इमनिच तथा ईयसुन परे रहते)। हलादेः- VII. ii.7 हलादि अङ्ग के (लघु अकार को परस्मैपदपरक इडादि सिच के परे रहते विकल्प से वृद्धि नहीं होती)। हलादौ- VI. 1.7 (प्राच्य देशों के जो करों के नाम वाले शब्द,उनमें भी) हलादि शब्द के परे रहते (हलन्त तथा अदन्त शब्दों से परे सप्तमी विभक्ति का अलक होता है)। हलि... -v.iv. 121 देखें-हलिसक्थ्यो : V. iv. 121 हलि-VI.i. 128 (ककार जिनमें नहीं है तथा जो न समास में वर्तमान नहीं है, ऐसे एतत् तथा तत् शब्दों के सु का लोप हो जाता है। हल् परे रहते,(संहिता के विषय में)। हलि-VI. iv.66 (घुसज्जक, मा, स्था, गा, पा, ओहाक त्यागे तथा षो अन्तकर्मणि -इन अङ्गों को) हलादि (कित, डित) प्रत्ययों के परे रहते (ईकारादेश होता है)। हलि-VI. iv. 100 (घस तथा भस् अङ्ग की उपधा का वेदविषय में लोप होता है) हलादि (तथा अजादि कित, डित) प्रत्यय परे रहते)। हलि-VI. iv. 113 (श्नान्त अङ्ग एवं घुसज्ञक को छोड़कर जो अभ्यस्तसजक अङ्ग उनके आकार के स्थान में ईकारादेश होता है। हलादि (कित, डिन्त् सार्वधातुक) परे रहते। हलि-VII. ii. 89 रै अङ्ग को) हलादि (विभक्ति) परे रहते (आकारादेश हो जाता है)। . हलि - VII. I. 113 (ककाररहित इदम् शब्द के इद् भाग का) हलादि विभक्ति परे रहते (लोप होता है)।

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