Book Title: Ashtadhyayi Padanukram Kosh
Author(s): Avanindar Kumar
Publisher: Parimal Publication

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Page 572
________________ सुहरितवणसोमेश्यः 554 तो)। सुहरिततृणसोमेभ्यः - V.in. 125 ...सूत्रान्तात्-IV. 1.59 बहदीहि समास में) स.हरित तण तथा सोम शब्दों से देखें-क्रतक्थादिOV.1.59 उत्तर (जम्मा शब्द अनिच्यत्ययान्त निपातन किया जाता सूद...-III. II. 153 . देखें- सूददीपदीक्षIII. 1. 153 ... ...सुहितार्थ.-II. I. 11 ....सूद..-VI. 1. 129 देखें-कूलसूदO VI. 1. 129. . देखें-पूरणगुणसुहितार्थ II. ii. 11 सूददीपदीक्ष-III. ii. 153 सुहृद्...- V. iv. 150 देखें- सुहृदुईदौ v. iv. 150 षूद,दीपी,दीक्ष धातुओं से (भी तच्छीलादि कर्ता हों तो सुहहुईदौ-V.iv. 150 वर्तमान काल में युच् प्रत्यय नहीं होता)। ....सूप...-VI. ii. 128 .. सुहृद् तथा दुईद् शब्द (कृतसमासान्त निपातन किये देखें-पललसूफVI.ii. 128.. जाते हैं, यथासङ्ख्य करके मित्र तथा अमित्र वाच्य हों सूपमानात्-VI. ii. 145 सु तथा उपमानवाची से उत्तर (क्तान्त उत्तरपद को ...सू...-III. 1.61 देखें- सत्सIII. 1.61 . अन्तोदात्त होता है)। . ...सू..-III. 1. 184 ...सूयति..-VII. Ii. 44 देखें- अतिलू III. 1. 184 देखें- स्वरतिसूति VII. . 44 ...सूरमसात्-IV.i. 168 ...सूकरयो:-III. 1. 183 देखें-यमगध IV.I. 168 देखें- हलसूकरयोः III. II. 183 ...सूर्त...- VIII. 1.61 सूक्त...-v.1.59 देखें-नसत्तनिफ्ताo VIII. ii. 61.. देखें- सूक्तसाम्नो: V. 1. 59 ...सूर्य... - III. . 114 सूक्तसाम्नो:- V. 1. 59 देखें- राजसूयसूर्य III. 1. 114 .. (प्रातिपदिकमात्र से मत्वर्थ में छ प्रत्यय होता है। सूक्त सूर्य...-VI. iv. 149 और साम = सामवेद के मन्त्र का गान वाच्य हो तो। देखें- सूर्यतिष्य VI. iv. 149 ..सूति..- VII. II. 34 सूर्यतिव्यागस्त्यमत्स्यानाम्-VI.iy. 149 देखें-स्वरतिसूतिo VII. ii. 34 (भसज्ञक अङ्ग के उपधा यकार का लोप होता है, ...सूति...-VIII. iii. 88 ईकार तथा तद्धित के परे रहते, यदि वह य) सूर्य, तिष्य, देखें-सुपिसूतिसमा: VIII. 1. 88. अगस्त्य तथा मत्स्य-सम्बन्धी हो। ...सूत्र..-III. I. 23 ...स्...-III.1.149 देखें-शब्दश्लोक III. II. 23 देखें-पुसृल्यः III.1. 149 ...सू...-III. II. 145 ...सूत्र..-V.1.57 देखें-लपसूद III. ii. 145 देखें-संज्ञासंघसूत्रा0 V.1.57 ...स...-IIL. I. 150 सूत्रम्- VIII. ill. 90 देखें-जुचक्रम्य III. ii. 150 (प्रतिष्णातम' में षत्व निपातन है धागा को कहने में। स-III. 160 सूत्रात्- IV. i. 64 देखें- सूघस्यदः III. ii. 160 (द्वितीयासमर्थ ककार उपधावाले) सत्रवाची प्रातिप- स-mill. 17 दिकों से (भी 'तदधीते तद्वेद' अर्थ में उत्पन्न प्रत्यय का सूधातु से (चिरस्थायी कर्ता वाच्य हो तो घब प्रत्यय लुक हो जाता है)। होता है)। 4 0 . . .,

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