Book Title: Ashtadhyayi Padanukram Kosh
Author(s): Avanindar Kumar
Publisher: Parimal Publication

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Page 553
________________ समि समि - III. 1. 7 सम्-उपसर्गपूर्वक (ख्या धातु से कर्म उपपद रहते 'क' प्रत्यय होता है)। समि - III. iii. 23 सम्-पूर्वक (यु, द्रु तथा दु धातुओं से कर्तृभिन्न कारक संज्ञा' तथा भाव में घञ् प्रत्यय होता है)। समि - III. iii. 31 (यज्ञविषय में) सम्पूर्वक (स्तु धातु से कर्तृभिन्न कारक संज्ञाविषय में घञ् प्रत्यय होता है)। 535 समि- VI. iii. 93 (सम्को) समि आदेश होता है, (वप्रत्ययान्त अनु धातु के उत्तरपद रहते । ... समित... - IV. Iv. 91 'देखें - तार्यतुल्यo IV. Iv. 91 ... समीप... - II. 1. 6 देखें - विभक्तिसमीपसमृद्धि II. 1. 6 समि - III. iii. 36 सम्पूर्वक (ग्रह धातु से कर्तृभिन्न संज्ञा तथा भाव में मुट्ठी .समूलयो:- III. Iv. 34 अर्थ होने पर में घञ्प्रत्यय होता है) । समीपे - II. iv. 16 (अधिकरण के परिमाण का) समीप अर्थ कहना हो तो (द्वन्द्व समास में विकल्प से एकवद्भाव होता है)। ... समुच्चयेषु - I. Iv. 95 देखें- पंदार्थसम्भावनान्ववसर्गo I. Iv. 95 समुच्चारणे - I. 1. 48 (स्पष्ट वाणी वालों के) सहोच्चारण = एक साथ उच्चारण करने अर्थ में (वर्तमान वद् धातु से आत्मनेपद होता है) । समुदाय - I. iii. 75 सम्, उत् एवम् आङ् उपसर्ग से उत्तर (यम् धातु से ग्रन्थ-विषयक प्रयोग न हो तो क्रियाफल के कर्ता को मिलने पर आत्मनेपद होता है) । समुदो:- III. III. 69 सम् उत् पूर्वक (अज् धातु से कर्तृभिन्न कारक संज्ञा तथा भाव में, समुदाय से पशुविषय प्रतीत हो तो अप् प्रत्यय होता है)। समुद्र... - IV. iv. 118 देखें- समुद्राभ्रात् IV. iv. 118 समुद्राप्रात् - IV. iv. 118 (सप्तमीसमर्थ) समुद्र और अभ्र प्रातिपदिकों से (वेदविषयक भवार्थ में घ प्रत्यय होता है)। समुपनिविषु - III. 1. 63 सम्, उप, नि, वि उपसर्गपूर्वक (तथा विना उपसर्ग भी यम् धातु से कर्तृभिन्न कारक संज्ञा तथा भाव में विकल्प से अप् प्रत्यय होता है, (पक्ष में घञ्) । समूल... - III. Iv. 36 देखें- समूलाकृतजीवेषु III. iv. 36 सम्पदा देखें - निमूलसमूलयो: III. Iv. 34. समूलाकृतजीवेषु - III. Iv. 36 समूल, अकृत तथा जीव कर्म उपपद हों तो (यथासङ्ख्य करके हन्, कृव् तथा ग्रह धातुओं से णमुल् प्रत्यय होता है)। समूह - IV. 1. 36 (समर्थों में जो षष्ठीसमर्थ प्रातिपदिक, उससे) समूह अर्थ को कहना हो (तो यथाविहित प्रत्यय होता है) । समूहवत् - Viv. 22 ('बहुत' अर्थ को कहने में प्रथमासमर्थ प्रातिपदिक से) 'तस्य समूह:' IV. ii. 36 के अधिकार में कहे हुए प्रत्ययों के समान प्रत्यय होते हैं (तथा मयट् प्रत्यय भी होता है)। समूह - IV. Iv. 140 (वसु प्रातिपदिक से) समूह (तथा मयट) के अर्थ में (यत् प्रत्यय होता है, वेदविषय में)। ....समूहाः - III. 1. 131 देखें- परिचाय्योपचाय्यo III. 1. 131 ... समृद्धि... - II.1.7 देखें- विभक्तिसमीपसमृद्धि II. 1. 7 ... सम्पत्ति... - II. 1. 7 देखें - विभक्तिसमीपसमृद्धि II. 1. 7 सम्पदा - Viv. 53 ( अभिव्याप्ति' गम्यमान हो तो कृ, भू तथा अस् धातु . के योग में तथा) सम्-पूर्वक पद धातु के योग में (भी विकल्प से साति प्रत्यय होता है)।

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