Book Title: Ashtadhyayi Padanukram Kosh
Author(s): Avanindar Kumar
Publisher: Parimal Publication

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Page 555
________________ सम्प्रसारणम् 537 सम्भूते सम्प्रसारणम् -VI.1. 32 (सन्परक,चङ्परक णि के परे रहते ह्वेज् धातु को) सम्प्र- सारण हो जाता है सम्प्रसारणम्-VI.1.37 (सम्प्रसारण के परे रहते) सम्प्रसारण नहीं होता है। समासारणम्-VI. iv. 131 (भसजक वस्वन्त अङ्ग को) सम्प्रसारण होता है। समप्रसारणम्-VII. iv.67 (घुत दीप्तौ' तथा ण्यन्त स्वपि अङ्ग के अभ्यास को) सम्मसारण होता है। . सम्प्रसारणस्य-VI. ill. 138 सम्प्रसारणान्त (पूर्वपद) के (अण् को उत्तरपद परे रहते दीर्घ होता है)। सम्मप्रसारणात्- VI. 1. 104 सम्प्रसारणसञक वर्ण से उत्तर (अच् परे हो तो भी पूर्व, पर के स्थान में पूर्वरूप एकादेश होता है)। समासारणे-VI.1.37 · सम्प्रसारण के परे रहते (सम्प्रसारण नहीं होता है)। समोदश्व-v.1.29 सम्, प्र, उत् तथा वि -इन उपसर्ग प्रातिपदिकों से (कटच् प्रत्यय होता है)। सम्बुद्धि-II. III. 48 (आमन्त्रित प्रथमा के एकवचन की) सम्बुद्धि संज्ञा होती सम्बुद्धौ- VII. I. 11 सम्बुद्धि परे रहते (चतुर् तथा अनडुह अङ्गों को (अम् आगम होता है)। सम्बुद्धौ- VIII. iii.1 (मत्वन्त तथा वस्वन्त पद को संहिता में) सम्बुद्धि परे रहते (वेदविषय में रु आदेश होता है)। सम्बुद्धौ- VII. il. 167 सम्बुद्धि परे रहते (भी आबन्त अङ्ग को सकारादेश होता है)। ...सम्बुद्ध्यो :- VIII. ii.8 देखें-डिसम्बुद्ध्योः VIII. ii. 8 सम्बोधने-II. iii. 47 सम्बोधने = आभिमुख्यकरण में (भी प्रथमा विभक्ति होती है)। सम्बोधने-III. ii. 125 सम्बोधन विषय में (भी धातु से लट् के स्थान में शत, . शानच् आदेश होते है। सम्भवति-V.1.51 (द्वितीयासमर्थ प्रातिपदिक से) 'सम्भव है' (अवहरण करता है' और 'पकाता है' अर्थों में यथाविहित प्रत्यय होता है)। ....सम्भावन...-1..95 देखें-पदार्थसम्भावनान्ववसर्ग I. V.95 सम्भावनवचने-- III. Ill. 155 सम्भावन अर्थ के कहने वाला (धातु) उपपद हो तो (यत् शब्द उपपद न होने पर सम्भावन अर्थ में वर्तमान धात से विकल्प से लिङ् प्रत्यय होता है,यदि अलम् शब्द का अप्रयोग सिद्ध हो)। सम्भावने-III. II. 154 (पर्याप्तिविशिष्ट) सम्भावन अर्थ में वर्तमान (धातु से लिङ् प्रत्यय होता है,यदि अलम् शब्द का अप्रयोग सिद्ध हो रहा हो)। सम्भूते - IV.II. 41 (सप्तमीसमर्थ प्रातिपदिक से) सम्भव अर्थ में (यथाविहित प्रत्यय होता है)। सम्बु- V.1.68 (एन्त तथा हस्वान्त प्रातिपदिक से उत्तर हल् का लोप होता है, यदि वह हल्) सम्बुद्धि का हो तो। सम्बुद्धी-I.1.16 (आचार्य शाकल्य के अनुसार, वैदिकेतर 'इति' शब्द के परे) सम्बुद्धि' संज्ञा के निमित्तभूत (ओकार की प्रगृह्म संशा होती है)। सम्बु-. 1. 33 (दूर से) सम्बोधन = बुलाने में (वाक्य एकश्रुति हो जाता

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