Book Title: Ashtadhyayi Padanukram Kosh
Author(s): Avanindar Kumar
Publisher: Parimal Publication

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Page 551
________________ समर्थाभ्याम् समर्थाभ्याम् - -VIII. i. 65 समान अर्थ वाले (एक तथा अन्य) शब्दों से युक्त (प्रथम तिङन्त को विकल्प से वेदविषय में अनुदात्त नहीं होता) । ... समर्याद... - VI. ii. 23 1. देखें - सविधस्नीso VI. ii. 23 समवप्रविभ्यः- 1. iii. 22 सम्, अव, प्र तथा वि उपसर्ग से उत्तर (स्था धातु से आत्मनेपद होता है) । समवायान् - IV. iv. 43 (द्वितीयासमर्थ) समूहवाची प्रातिपदिकों से (समवेत होता है'- अर्थ में ठक् प्रत्यय होता है ) । समवाये - VI. 1. 133 समुदाय अर्थ में (भी कृ धातु परे हो तो सम् तथा परि से उत्तर ककार, से पूर्व सुट् का आगम होता है, संहिता के विषय में) । ... समः - VIII. iii. 88 देखें - सुपिसूतिसमा: VIII. iii. 88 ... समान... - II. 1. 57 देखें - पूर्वापरप्रथम II. 1. 57 ... समान... - IV. 1. 30 देखें- केवलमामकo IV. 1. 30 समानकर्तृकयोः - III. iv. 21 दो क्रियाओं का एक कर्ता होने पर (उनमें से पूर्वकाल में वर्तमान धातु से क्त्वा प्रत्यय होता है) । समानकर्तृका - III. 1. 4 (इच्छा क्रिया के कर्म का अवयव), जो इच्छा क्रिया का समानकर्तृक अर्थात् इष् धातु के साथ समान कर्ता वाला हो, उस (धातु) से (विकल्प करके सन् प्रत्यय होता है) । समानकर्तृकेषु - III. iii. 158 533 समान है कर्ता जिसका, ऐसी (इच्छार्थक) धातुओं के उपपद रहते (धातु से तुमुन् प्रत्यय होता है)। समानकर्मकाणाम् - III. iv. 48 (अनुप्रयुक्त धातु के साथ) समान कर्मवाली (हिंसार्थक ) धातुओं से भी तृतीयान्त उपपद रहते णमुल् प्रत्यय होता है)। समानाधिकरणे समानतीर्थे - IV. iv. 107 (सप्तमीसमर्थ) समानतीर्थ प्रातिपदिक से (रहने वाला' अर्थ में यत् प्रत्यय होता है)। समानपदे - VIII. iv. 1 (रेफ तथा षकार से उत्तर नकार को णकारादेश होता है) एक ही पद में। समानपादे - VIII. iii. 9 (दीर्घ से उत्तर नकारान्त पद को अट् परे रहते पादबद्ध मन्त्रों में रु होता है, यदि निमित्त तथा निमित्ती दोनों) एक ही पाद में हों। समानशब्दानाम्- IV. iii. 100 (बहुवचनविषय में वर्तमान जो जनपद के) समान ही (क्षत्रियवाची प्रातिपदिक, उनको जनपद की भांति ही सारे कार्य हो जाते हैं)। समानस्य - VI. iii. 83 (वेदविषय में) समान शब्द को (स आदेश हो जाता है; मूर्धन्, प्रभृति, उदर्क उत्तरपद न हों तो)। समानाधिकरण... - VI. iii. 45 देखें- समानाधिकरणजातीययो: VI. iii. 45 समानाधिकरण:- I. ii. 42 समान है अधिकरण = आश्रय जिनका, ऐसे पदों वाला (तत्पुरुष कर्मधारयसंज्ञक होता है)। समानाधिकरणजातीययो: - VI. iii. 45 समानाधिकरण उत्तरपद रहते तथा जातीय प्रत्यय परे रहते (महत् शब्द को आकारादेश होता है)। समानाधिकरणे - I. iv. 104 (युष्मद् शब्द के उपपद रहते) समान अभिधेय होने पर (युष्मद् शब्द का प्रयोग न हो या हो तो भी मध्यम पुरुष होता है)। समानाधिकरणे - VI. iii. 33 (एक ही अर्थ में अर्थात् एक ही प्रवृतिनिमित्त को लेकर भाषित = कहा है पुँल्लिङ्ग अर्थ को जिस शब्द ने, ऐसे ऊङ्वर्जित भाषितपुंस्क स्त्री शब्द के स्थान में पुंल्लिङ्गवाची शब्द के समान रूप हो जाता है, पूरणी तथा प्रियादिवर्जित स्त्रीलिङ्ग) समानाधिकरण उत्तरपद परे हो तो ।

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