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जसोः
जश्शसो: - VII. 1. 20
(नपुंसकलिङ्ग में वर्तमान अङ्ग से उत्तर) ज और शस् के स्थान में (शि आदेश होता है)।
... जस्... - IV. 1. 2
देखें - स्वौजसमौट् IV. 1. 2
जस - VI. 1. 160
(तिसृ शब्द से उत्तर) जस्को (अन्तोदात्त होता है)
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जस:
VII. i. 17
(अकारान्त सर्वनाम अङ्ग से उत्तर) जस् के स्थान में (शी आदेश होता है)।
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जसि – I. 1. 31
(द्वन्द्व समास में सर्वादियों की सर्वनामसंज्ञा) जस् सम्बन्धी कार्य में (विकल्प से नहीं होती)।
जसि - VI. 1. 101
(दीर्घ वर्ण से उत्तर) जस् (तथा चकार से इच्) परे रहते (पूर्वसवर्ण दीर्घ एकादेश नहीं होता है) ।
जसि - VII. 1. 93
जस् विभक्ति परे हो तो (युष्मद्, अस्मद् अङ्ग के मपर्यन्त अंश को क्रमशः यूय, वय आदेश होते हैं) । जसि
-VII. iii. 109
जस् परे रहते (भी ह्रस्वान्त अङ्ग को गुण होता है) । जसे: - VII. 1.50
(वेद-विषय में अवर्णान्त अङ्ग से उत्तर) जस् को (असुक् आगम होता है)।
.... जहातिसाम् - VI. iv. 66 देखें
जहाते:
- घुमास्थाo VI. iv. 66
- VI. iv. 116
'ओहाक् त्यागे' अङ्ग को (भी इकारादेश विकल्प से होता है; हलादि ति डित् सार्वधातुक परे रहते ) । जहाते: - VII. iv. 43
263
'ओहाक् त्यागे' अङ्ग को (भी क्त्वा प्रत्यय परे रहते हि आदेश होता है)।
जा - VII. iii. 79
(ज्ञा तथा जर्नी अङ्ग को शित् प्रत्यय परे रहते) जा आदेश होता है।
.. जागराम् - VI. 1. 186 देखें... - भीहीभृ० VI. 1. 186
जा: - III. ii. 165
जातिकालसुखादिभ्यः
जागृ धातु से (वर्तमान काल में ऊक प्रत्यय होता है,
तच्छीलादि कर्ता हो तो) ।
... जागृ... - VII. ii. 5 देखें
- हम्यन्तक्षणo. VII. ii. 5
जागृभ्यः - III. 1. 38
देखें - उषविदजागृभ्यः III. 1. 38
जाग्र: - VII. iii. 85
जागृ अङ्ग को (गुण होता है; वि, चिण्, णल् तथा ङ् इत् वाले प्रत्ययों को छोड़कर अन्य सार्वधातुक प्रत्ययों के परे रहते) ।
जातः - IV. iii. 25
(सप्तमीसमर्थ प्रातिपदिकों से) 'उत्पन्न हुआ' अर्थ में ( यथाविहित प्रत्यय होता है)।
जातरूपेभ्यः - IV. iii. 150
(षष्ठीसमर्थ) सुवर्णवाची प्रातिपदिकों से (परिमाण जाना जाये तो विकार अभिधेय होने पर अण् प्रत्यय होता है) । जाति...
- V. iv. 94
देखें - जातिसंज्ञयो: V. iv. 94
जाति... - VI. ii. 170
देखें
जातिः - II. 1. 64
जातिवाची (सुबन्त) शब्द (पोटा, युवति, स्तोक, कतिपय, गृष्टि, धेनु, वशा, वेहद्वष्कयणी, प्रवक्तृ, श्रोत्रिय, अध्यापक, धूर्त — इन समानाधिकरण समर्थ सुबन्तों के साथ समास को प्राप्त होता है, और वह तत्पुरुष समास होता है)। जाति:
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जातिकाल० VI. ii. 170
- II. iv. 6
जातिवाचकों का (द्वन्द्व एकवद् होता है, प्राणीवाचियों को छोड़कर)। जाति: -
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VI. i. 138
(कुस्तुम्बरु शब्द में तकार से पूर्व सुट् का निपातन किया जाता है, यदि वह) जाति अर्थ वाला हो तो । जातिकालसुखादिभ्यः - VI. ii. 170
(आच्छादनवाची शब्द को छोड़कर जो ) जातिवाची कालवाची एवं सुखादि शब्द, उनसे उत्तर क्तान्त
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