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यजयाचरुवप्रक्चर्च:
यहः-II. iv.74
यच्चयत्रयोः -III. iii. 148 (अच् प्रत्यय के परे रहते) यङ्का (लक हो जाता है. (अनवक्तृप्ति = असम्भावना, अमर्ष = अक्षमा चकार से बहुल करके अच् परे न हो तो भी लुक हो जाता गम्यमान हो तो) यच्च, यत्र ये अव्यय उपपद रहते (धातु
से लिङ्प्रत्यय होता है)। यडः-VII. iii.94
...यच्छ... -VII. iii. 78
देखें-पिबजिन VII. iii. 78 यङ् से उत्तर (हलादि पित् सार्वधातुक को विकल्प से
यच्यरः -VIII. iii. 87 ईट् आगम होता है)।
(उपसर्ग में स्थित निमित्त से उत्तर तथा प्रादुस् शब्द से यङि-VI. I. 19
उत्तर) यकारपरक एवं अच्परक (अस् धातु के सकार को (जिष्वप, स्यम् तथा व्येन धातुओं को सम्प्रसारण हो मूर्धन्य आदेश होता है)। जाता है) यङ् प्रत्यय के परे रहते।
यज.. -III. 1. 166 यङि-VII. iv. 30
देखें- यजजपदशाम् III. ii. 166 (कृतथा संयोग आदि वाले ऋकारान्त अङ्ग को) यङ्
यज... -III. iii.90
देखें - यजयाच III. iii. 90 परे रहते (गुण होता है)।
यज... -VII. iii.66 यङि-VII. iv.63
देखें- यजयाच VII. 11.66 (कुङ् अङ्ग के अभ्यास को) यङ् परे रहते (चवर्गादेश ...यज.. - VIII. II. 36 नहीं होता)।
देखें-प्रश्वप्रस्ज.VIII. 1.36 यङि-VIII. 1. 20
यजः-III. ii. 72 - (गृ धातु के रेफ को) यङ परे रहते (लत्व होता है। यज् धातु से (अव उपपद रहते मन्त्र विषय में 'ण्विन'
प्रत्यय होता है)। यङि-VIII. iii. 112
यजः -III. ii. 85 (इण तथा कवर्ग से उत्तर सिच के सकार को) यङ् परे
यज् धातु से (करण उपपद रहते णिनि प्रत्यय होता है, रहते (सूर्धन्य आदेश नहीं होता)।
भूतकाल में)। ...यो - VI.1.9
यजजपदशाम् -III. ii. 166 देखें-सन्यो : VI.i.9
यज,जप,दश् - इन (यडन्त) धातुओं से (तच्छीलादि ...यडो: -VI.I. 29
कर्ता हो तो वर्तमानकाल में ऊक प्रत्यय होता है)। देखें-लिड्यो : VI.1.29
यजध्वैनम् - VII. i. 43 यङ्लुको: - VII. iv. 82
(वेद-विषय में) 'यजध्वनम्' यह शब्द भी निपातन यङ् तथा यङ्लुक् के परे रहते (इगन्त अभ्यास को गुण किया जाता है। होता है)।
यजयाचयतविच्छप्रच्छरक्ष:-III. iii. 90 यचि-I. iv. 18
यज.याच.यत.विच्छ प्रच्छ तथा रक्ष धातओं से (कर्त(सर्वनामस्थानभिन्न) यकारादि और अजादि (स्वादि)। भिन्न कारक संज्ञा तथा भाव में नङ् प्रत्यय होता है)। प्रत्ययों के परे रहते (पूर्व की भसंज्ञा होती है)। यजयाचरुवप्रवचर्च: - VII. iii. 66 यच्च.. -III. iii. 148
यज,टुयाचु,रुच,प्रपूर्वक वच तथा ऋच्-इन अङ्गों देखें- यच्चयत्रयोः III. ii. 148
के (चकार, जकार को भी ण्य प्रत्यय परे रहते कवर्गादेश नहीं होता)।