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यमरमनमाताम्
यमरमनमाताम् - VII. ii. 73
यम, रमु णम तथा आकारान्त अङ्ग को (सक् आगम होता है तथा सिच् को परस्मैपद परे रहते इट् का आगम होता है।
यमहनः - I. iii. 28
(आङ् उपसर्ग से उत्तर अकर्मक) यम् तथा हन् धातुओं से (आत्मनेपद होता है)।
.. यमाम् - VII. iii. 77
देखें
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- इयुगमियमाम् VII. I. 77
यमाम् - VIII. iv. 63
(हल् से उत्तर) यम् का (यम् परे रहते विकल्प से लोप होता है।
यमि - VIII. iv. 63
(हल् से उत्तर यम् का) यम् परे रहते (विकल्प से लोप होता है)।
ययतो - VI. II. 156
(गुणप्रतिषेध अर्थ में नल से उत्तर अतदर्थ में वर्तमान) जो य तथा यत् (तद्धित प्रत्यय, तदन्त उत्तरपद को (भी अन्त उदात्त होता है)।
ययि - VIII. iv. 57
(अनुस्वार को) यय् प्रत्याहार परे रहते (परसवर्ण आदेश होता है)।
यर:
- VIII. iv. 44
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(पदान्त) यर् प्रत्याहार को (अनुनासिक परे रहते विकल्प से अनुनासिक आदेश होता है ) ।
य - Viv. 131
.(वेशस् और यशस् आदिवाले भग शब्दान्त प्रातिपदिक से मत्वर्थ में) यल प्रत्यय होता है, (वेदविषय में)।
... यलोप.... - I. 1. 57
देखें
... यव...
देखें
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पदान्तद्विर्वचनवरे I. 1. 57
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430
. IV. 1. 48
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... यव... - V. 1. 7
देखें खलयवमाष० V. 1. 7
यव.. - V. ii. 3
देखें
इन्द्रवरुणभवo IV. 1. 48
यवयवकo Vii. 3
... यवक... - V. ii. 3
देखें - यवयवकo V. ii. 3
... यवन... - IV. 1. 48
देखें - इन्द्रवरुणभवo IV. 1. 48
... यवबुसात् - IV. II. 48 देखें
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... यवाभ्याम् - IV. iii. 146 देखें - तिलयवाभ्याम् IV. iii. 146
... यवम् - VI. ii. 78 देखें - गोतन्तियवम् VI. ii. 78 यवयवकषष्टिकात् - V. ii. 3
कलाप्यश्वत्यo IV. iii. 48
(षष्ठीसमर्थ धान्यविशेषवाची) यव, यवक तथा षष्टिक प्रातिपदिकों से (उत्पत्तिस्थान' अभिधेय हो तो यत् प्रत्यय होता है, यदि वह उत्पत्तिस्थान खेत हो तो) ।
... यवाग्वोः - IV. ii. 135
देखें- गोयवाग्वो: IV. II. 135
....यश आदे. - IV. Iv. 131
देखें वेशीवशआदे IV. iv. 131
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... यष्ट्यो - IV. Iv. 59
देखें शक्तियष्ट्यो: IV. Iv. 59
यसः
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यस्मात्
III. i. 71
प्रयत्नार्थक यसु धातु से (उपसर्गरहित होने पर विकल्प से श्यन् प्रत्यय होता है, कर्तृवाची सार्वधातुक परे रहने
पर)।
... यसः - V. ii. 138
देखें- बभस् VII. 138
यस्कादिभ्य - II. iv. 63
यस्क आदि गणपठित शब्दों से परे (स्त्रीवर्जित गोत्र में विहित प्रत्यय का बहुत्व की विवक्षा में लुक् होता है; यदि उस गोत्र- प्रत्यय के द्वारा किया बहुत्व हो तो)। यस्मात् - 1. Iv. 13
जिस (धातु या प्रातिपदिक) से (प्रत्यय का विधान किया जाये, उस प्रत्यय के परे रहते उस धातु या प्रातिपदिक का आदि वर्ण है आदि जिसका, उस समुदाय की अंग संज्ञा होती है)।
यस्मात् - II. iii. 9
जिससे अधिक हो और जिसका सामर्थ्य हो, उसमें कर्मप्रवचनीय के योग में सप्तमी विभक्ति होती है)।