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....स्.. -I.ili.4
देखें-तुस्मा: 1. iii.4 स्... -VIII. ii. 29
देखें-स्को: VIII. ii. 29 स्.... -VIII. ii.37
देखें - स्वोः VIII. I. 37 स्... - VIII. iv.39
देखें-स्तो: VIII. iv.39 स-प्रत्याहारसूत्र XIII
पठित तृतीय वर्ण।
पाणिनि द्वारा अष्टाध्यायी के आदि में पठित वर्णमाला का बयालीसवां वर्ण। स... -III. iv.91
देखें-सवाभ्याम् III. iv. 91 स... -V.iv.40
देखें-सस्नो v. iv. 40 स... - VIII. 1. 67.
देखें- ससजुषः VIII. ii. 67 स -I. 11.67
(अण्यन्तावस्था में जो कर्म) वही (यदि ण्यन्तावस्था में) कर्ता बन रहा हो तो ऐसी ण्यन्त धातु से आत्मनेपद होता है,आध्यान = उत्कण्ठापूर्वक स्मरण अर्थ को छोड़कर)।
स:-I. iv. 32 .. (करणभूत कर्म के द्वारा जिसको अभिप्रेत किया जाये)
वह कारक (सम्प्रदानसंज्ञक होता है)। स-1. iv.52 (गत्यर्थक, बुद्ध्यर्थक, भोजनार्थक तथा शब्दकर्मवाली और अकर्मक धातुओं का जो अण्यन्तावस्था में कर्ता) वह (ण्यन्तावस्था में कर्मसंज्ञक हो जाता है)। स-II. iv. 17 (जिसको पूर्व में एकवद्भाव कहा है) वह (नपुंसकलिंग वाला होता है)। ...स-II. iv. 78
देखें- घाघेट्शाच्छास II. iv.78 स-III. iv.98
(लेट्-सम्बन्धी उत्तमपुरुष के) सकार का (लोप विकल्प . से हो जाता है)।
सः -IV.ii.54
प्रथमासमर्थ [छन्दोवाची प्रातिपदिकों से षष्ठ्यर्थ में यथाविहित (अण) प्रत्यय होता है, प्रगाथों के अभिधेय होने पर,यदि वह प्रथमासमर्थ छन्द आदि आरम्भ में हो]। स:-IV.ii. 89
प्रथमासमर्थ प्रातिपदिक से (षष्ठ्यर्थ में यथाविहित प्रत्यय होता है, यदि प्रथमासमर्थ निवास हो तो)। स: - V.i.55
प्रथमासमर्थ प्रातिपदिकों से (षष्ठ्यर्थ में यथाविहित प्रत्यय होते हैं, यदि वह प्रथमासमर्थ भाग, मूल्य तथा वेतन समानाधिकरण वाला हो तो)। स:-v.il.78
प्रथमासमर्थ प्रातिपदिकों से (षष्ठयर्थ में कन प्रत्यय होता है, यदि वह प्रथमासमर्थ प्रातिपदिक ग्राम का मुखिया हो तो)। . स-v.1.6
(सर्व शब्द के स्थान में विकल्प से) स आदेश होता है, (ढकारादि प्रत्यय के परे रहते)। स:-VI.1.62
(धातु के आदि में षकार के स्थान में आदेश अवस्था में) सकार आदेश होता है। स-VI.i. 130
'स' के (सु का अच् परे रहते लोप होता है,यदि लोप होने पर पाद की पूर्ति हो रही हो तो)। स: -VI. 1.77
(सह शब्द को) स आदेश होता है, (उत्तरपद परे रहते, सञ्जाविषय में)। . स:-VII. ii. 106 (त्यदादि अंगों के अनन्त्य तकार और दकार के स्थान में सु विभक्ति परे रहते) सकारादेश होता है। स-VII. iv.49
सकारान्त अङ्ग को (सकारादि आर्धधातुक के परे रहते तकारादेश होता है)। स:-VIII. Iii. 34
(खर परे रहते विसर्जनीय को) सकार आदेश होता है। स -VIII. II. 38
(अपदादि कवर्ग तथा पवर्ग परे रहते विसर्जनीय को) सकारादेश होता है।