________________
.. यजादीनाम्
...
... यजादीनाम् - VI. 1. 15
देखें वचिस्वपिo VI. 1. 15
-
यजुषि - VI. 113
यजुर्वेद-विषय में (एडन्त उरः शब्द को प्रकृतिभाव होता अकार परे रहते)।
है,
यजुषि VII. in. 38
(देव तथा सुम्न अङ्ग को क्यच् परे रहते आकारादेश होता है) यजुर्वेद की (काठक शाखा में)।
-
यजुषि - VIII. iii. 104
यजुर्वेद में (तकारादि युष्मद्, तत् तथा ततक्षुस् परे रहतेइण तथा कवर्ग से उत्तर सकार को कुछ आचार्यों के मत मूर्धन्य आदेश होता है)।
यजेः
- II. iii. 63
यज् धातु के (करण कारक में भी वेदविषय में बहुल करके षष्ठी विभक्ति होती है)।
... यजो: - III. 1. 103
देखें सुजो III. 1. 103
... यजो: - III. 1. 128 देखें
-
जो III II 128
... - III. iii. 94
देखें - व्रजयजो: III. ili. 94
यज्ञ... - V. 1. 70
देखें यज्ञर्विग्भ्याम् N. L. 70 यज्ञकर्मणि - Iii. 34
यज्ञकर्म में (उदात्त, अनुदात्त तथा स्वरित स्वरों को एकश्रुति हो जाती है जप, न्यूख आश्वलायन श्रौतसूत्रसामवेद के गान को
पठित निगदविशेष तथा साम छोड़कर)।
=
यज्ञकर्मणि - VIII. 1. 88
(ये' शब्द को) यज्ञ की क्रिया में (प्लुत उदात्त होता
है) ।
... यज्ञपात्रप्रयोग... - VIII. 1. 15 देखें- रहस्यमर्यादा० VIII. 1. 15
यज्ञर्विग्भ्याम् - V. 1.70
424
(द्वितीयासमर्थ) यज्ञ तथा ऋत्विग् प्रातिपदिकों से (समर्थ है' अर्थ में यथासङ्ख्य करके घ तथा खञ् प्रत्यय होते हैं)।
यज्ञसंयोगे
III. ii. 132
से
यज्ञ से संयुक्त अभिषव में वर्तमान (पुञ् धातु वर्तमान काल में शतृ प्रत्यय होता है) ।
यज्ञसंयोगे IV. 33
i.
—
(पति शब्द से स्त्रीलिङ्ग में) यज्ञसंयोग गम्यमान होने पर (ङीप् प्रत्यय होता है और नकार अन्वादेश भी हो जाता है) ।
-
यज्ञाख्येभ्यः - V. 1. 94
(षष्ठीसमर्थ) यज्ञ की आख्यावाले प्रातिपदिकों से (भी 'दक्षिणा' अर्थ में उब प्रत्यय होता है)।
यज्ञा - VII. 1. 62
(प्रयाज तथा अनुयाज शब्द) यज्ञ का अंग हों तो (निपातन किये जाते हैं।
यज्ञे - III. iii. 31
यज्ञविषय में (सम्पूर्वक स्तु धातु से कर्तृभिन्न कारक संज्ञाविषय में घञ् प्रत्यय होता है) ।
...
-III. iii. 47
यज्ञविषय में (परि पूर्वक मह धातु से कर्तृभिन्न कारक संज्ञा तथा भाव में घञ् प्रत्यय होता है)।,
यज्ञे VI. Iv. 54
यज्ञकर्म में (इडादि तृच् परे रहते 'शमिता' यह निपातन किया जाता है)।
. यज्ञेभ्यः - IV. iii. 68
देखें तुज्ञेय IV. II. 68
1
यज्
यञ्... - II. iv. 64
देखें- यजत्रो 11. Iv. 64
-
यञ्... - IV. 1. 101 देखें
यजिओ IV. 1. 101
यञ् - IV. 1. 105
(गर्गादि षष्ठीसमर्थ प्रातिपदिकों से गोत्रापत्य में) यञ् प्रत्यय होता है।
यञ् - IV. 1. 39
(षष्ठीसमर्थ केदार शब्द से) यन् प्रत्यय होता है (तथा वुञ् भी) ।