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पदार्थ....
पदार्थ... - I. iv. 95
देखें पदार्थसम्भावनान्यवसर्ग० 1. Iv. 95
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पदार्थसम्भावनान्ववसर्गगर्हासमुच्चयेषु
पदार्थ = अप्रयुक्त पद का अर्थ, सम्भावन = सम्भावना व्यक्तकरना, अन्ववसर्ग कामचार अर्थात् करे या न करे, गर्हा = निन्दा तथा समुच्चय- इन अर्थों में ( अपि शब्द की कर्मप्रवचनीय और निपात संज्ञा होती है। पदास्वैरिवाह्मापक्ष्येषु - III. 1. 119
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पद, अस्वैरी = पराधीन, बाह्या= बाहर, पक्ष्य = पक्ष में रहने वाले इन अर्थों में भी ग्रह धातु से क्यप् प्रत्यय होता है)।
... पदि... - III. iv. 56
देखें विशिपतिपदि० III. Iv. 56
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पदे - 1. iv. 75
(मध्ये), पदे (तथा निवचने) शब्द (भी कृञ् के योग में विकल्प से गति और निपातसंज्ञक होते है)।
.. पदे - VI. II. 191 ii.
देखें अकृत्पदे VI. 1. 191
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1. Iv. 95
पदे - VI. ii. 7
(अपदेशवाची तत्पुरुष समास में) पद शब्द उत्तरपद रहते (पूर्वपद को प्रकृतिस्वर होता है ) ।
पदे. - VIII. iii. 21
(अवर्ण पूर्ववाले पदान्त य्. व् का उन्) पद के परे रहते (भी लोप होता है)।
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पदे - VIII. iii. 47
(समास में अनुत्तरपदस्थ अधस् तथा शिरस् के विसर्जनीय को सकार आदेश होता है), पद शब्द परे रहते । .... पदेषु - III. II. 23
देखें - शब्दश्लोक० III. ii. 23
पदोत्तरपदम् - IV. iv. 39
पद शब्द उत्तरपदवाले (द्वितीयासमर्थ) प्रातिपदिक से (ग्रहण करता है'- अर्थ में ठक् प्रत्यय होता है) । ... पनिभ्यः
III. 1. 28
देखें - गुपूधूपविच्छिo III. 1. 28
349
पन्थ - IV. iii. 29
(सप्तमीसमर्थ पथिन् प्रातिपदिक से 'जात' अर्थ में वुन् प्रत्यय होता है तथा प्रत्यय के साथ-साथ पथिन् को) पन्च आदेश (भी) होता है।
पन्यः - V. 1. 75
(द्वितीयासमर्थ पथिन् प्रातिपदिक से 'नित्य ही जाता है' अर्थ में ण प्रत्यय होता है, तथा) उस प्रत्यय के सन्नियोग से पथिन् को पन्थ आदेश हो जाता है।
... पयस्... - VIII. iii. 53
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देखें पतिपुत्र VIII. III. 53
पयस् = दूध, पानी, वर्षा ।
..पवस - IV. 1. 157 पयसोः iv.
देखें – गोपयसो: IV. iv. 157
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... पर... - I. 1. 33
देखें पूर्वपरावरदक्षिणोत्तरापराधराणि 1. 1. 33
पर
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दूर।
पर...
III. iv. 18
देखें - परावरयोगे III. iv. 18
पर... - IV. 1. 5
देखें - परावराधमोत्तo IV. 1. 5
पर... - V. iii. 29
देखें - परावराभ्याम् V. III. 29
परः - I. 1. 46
(अन्त्य अच् से) परे (मिदागम होता है)।
पर:
परः I. iv. 108
(वर्णों के) अतिशयित = अत्यन्त (समीपता की संहिता संज्ञा होती है)।
परः - III. 1. 2
(जिसकी प्रत्यय संज्ञा की गई है, वह जिस धातु या प्रातिपदिक से विधान किया जावे, उससे परे होता है । (यह अधिकार भी पञ्चमाध्याय की समाप्ति तक जानना चाहिये) ।
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- VIII. iii. 4
परः
(रु से पूर्व वर्ण, जो अनुनासिक से भिन्न है, उससे परे (अनुस्वार आगम होता है)।