________________
तस्य
297
तस्य-V.i. 118
....ताडधौ-III. 1.55 षष्ठीसमर्थ प्रातिपदिक से (भाव' अर्थ में त्व और तल देखें-पाणिवताडयौ III. 1. 55 प्रत्यय होते है)।
तात् - VII. 1.44 तस्य-V.ii. 24
(लोट् मध्यम पुरुष बहुवचन 'त' के स्थान में) तात् षष्ठीसमर्थ (पील्वादि तथा कर्णादि) प्रातिपदिकों से आदेश होता है, (वेद-विषय में)। (यथासङ्ख्य करके 'पाक' तथा 'मूल' अर्थ अभिधेय हो । तातड्-VII. 1.35 - तो कुणप् तथा जाहच् प्रत्यय होते है)।
(आशीर्वाद-विषय में तु और हि के स्थान में) तातङ् तस्य -v.ii. 48
आदेश होता है, (विकल्प करके)। षष्ठीसमर्थ (सङख्यावाची प्रातिपदिकों से 'पूरण' अर्थ तातिल -IV. iv. 141 में डट् प्रत्यय होता है)।
(सर्व और देव प्रातिपदिकों से वेद-विषय में स्वार्थ में) तस्य - VII.i. 44
तातिल् प्रत्यय होता है। (लोट् मध्यम पुरुष बहुवचन) त के स्थान में (तात्
...तातिलौ - V. iv. 41 · आदेश हो जाता है, वेदविषय में)।
देखें-तिल्तातिलौ v. iv. 41 तस्य -VIII.1.2
तादर्थे - V. iv. 24 उस द्वित्व किये हुये शब्द के (पर वाले शब्द की आने--
(देवता शब्द अन्तवाले प्रातिपदिक से) 'उसके लिये
यह अर्थ में (यत् प्रत्यय होता है)। डित सञ्ज्ञा होती है)। ...ताच्छील्य.. - III. ii. 20
तादौ - VI. ii. 50
(तु शब्द को छोड़कर) तकारादि (एवं न इत्सज्ञक कृत) .: देखें - हेतुताच्छील्य. II. ii. 20
के परे रहते (भी अव्यवहित पूर्वपद गति को प्रकृतिस्वर .. ताच्छील्यवयोक्चनशक्तिषु - III. ii. 129
होता है)। ताच्छील्य = फल की आकांक्षा किये विना स्वभाव
तादौ - VIII. iii. 101 से ही उस क्रिया में प्रवृत्त होना, वयोवचन = अवस्था .... को कहना तथा शक्ति = सामर्थ्य-इन अर्थों के द्योतित
(हस्व इण से उत्तर सकार को) तकारादि तद्धित (परे होने पर (धातु से वर्तमान काल में चानश् प्रत्यय होता
रहते (मूर्धन्य आदेश होता है)।
तानि -I. iv. 100 ताच्छील्ये -III. 1. 11
वे तिडों के तीन तीन (एक-एक करके क्रम से एकवचन, तत्स्वभावता गम्यमान होने पर (आङ्पूर्वक ह धातु से ।
द्विवचन और बहुवचनसंज्ञक होते हैं)। कर्म उपपद रहते अच् प्रत्यय होता है)।
तान्तन्ताम: -III. iv. 101 ताच्छील्ये -III. ii. 78
(डित्-लकार-सम्बन्धी तस्,थस.थ और मिप के स्थान
में क्रमशः) ताम, तम्त और अम् आदेश होते हैं। तत्स्वभावता गम्यमान होने पर (अजातिवाची सुबन्त उपपद रहते सब धातुओं से 'णिनि' प्रत्यय होता है। ...तान्तात् - VII. Iii. 51
देखें-इसुसुक्तान्तात् VII. iii. 51 ताच्छील्ये - VI. iv. 177 (कार्म' इस शब्द में) ताच्छील्यार्थक = तत्स्वभावार्थक
तापेः - III. 1. 39 ' (ण) परे रहते (टिलोप निपातन किया जाता है)।
णिजन्त तप् धातु से (द्विषत् और पर कर्म उपपद रहते खच् प्रत्यय होता है)।