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च-VIII. ii. 45
(ओकार इत् वाले धातुओं से उत्तर) भी (निष्ठा के त को नकारादेश होता है)। च-VII. 1.65
(मकार तथा वकार परे रहते) भी (मकारान्त धातु को नकाराटेसा होता है)। च.-III. 1.67
(अवयाः, श्वेतवा) तथा (पुरोडाः- ये शब्द दीर्घ किये हुये सम्बुद्धि में निपातन है)। च-VIII. 1.71 .
(महाव्याहृति भुवस् शब्द को) भी (वेद-विषय में दोनों प्रकार से अर्थात् रु एवं रेफ दोनों ही होते है)। च-VIII. 1.75
(दकारान्त जो पद् धातु, उसको) भी (सिप् परे रहते विकल्प से रु आदेश होता है)। च-VIII. 1.77
(हल् परे रहते) भी रेफान्त एवं वकारान्त धातु की उप- धाभूत इक् को दीर्घ होता है)। च-VIII. II. 78 .
(हल् परे रहते धातु के उपधाभूत रेफ एवं वकार के परे - रहते उपधा इक् को) भी (दीर्घ होता है)। - च-VIII. 1.84
(दर से बुलाने में जो प्रयुक्त वाक्य,उसकी टि को) भी (प्लुत उदात्त होता है)। च-VIH. 1.93
(अग्नीत के प्रेषण में पद के आदि को प्लुत उदात्त होता है), तथा (उससे परे को भी होता है, यज्ञकर्म में)। च-VIII. 1. 94
(निग्रह करने के पश्चात् अनुयोग में वर्तमान जो वाक्य - उसकी टि को) भी विकल्प से प्लुत उदात्त होता है)। च-VIII. 1.99
(प्रतिश्रवण में वर्तमान वाक्य की टि को) भी (प्लुत उदात्त होता है)। च-VIII. ii. 101 (चित् यह निपात) भी (जब उपमा के अर्थ में प्रयुक्त हो, तो वाक्य की टि को अनुदात्त प्लत होता है।।
च-VIII. ii. 102
(उपरि स्विदासीत्' इसकी टि को) भी (प्लुत अनुदात्त होता है)। च-VIII. iii. 21 (अवर्ण पूर्ववाले पदान्त यत् का उब् पद के परे रहते) भी (लोप होता है)। च - VIII. II. 24
(अपदान्त नकार को ती चकार से मकार को) भी (झल परे रहते अनुस्वार आदेश होता है)। च -VIII. iii. 30
(नकारान्त पद से उत्तर) भी (सकारादि पद को विकल्प से धुट का आगम होता है)। च-VIII. III. 37
(कवर्ग तथा पवर्ग परे रहते विसर्जनीय को यथासङ्ख्य करके = क अर्थात् जिह्वामूलीय तथा = प अर्थात् उपध्मानीय आदेश होते है).तथा चकार से विसर्जनीय भी होता है)। च-VIII. iii. 41
(इकार और उकार उपधा वाले प्रत्ययभिन्न समुदाय के विसर्जनीय को) भी (षकार आदेश होता है; कवर्ग, पवर्ग परे रहते)। च-VIII. III. 48
(कस्कादि-गणपठित शब्दों के विसर्जनीय को) भी (सकार अथवा षकार आदेश यथायोग से होता है;कवर्ग. पवर्ग परे रहते)। च-VIII. 1. 52 (पा धातु के प्रयोग परे हों तो) भी (पञ्चमी के विसर्जनीय को बहल करके सकार आदेश होता है.वेद-विषय में)। च -VIII. iii. 60
(इण तथा कवर्ग से उत्तर शासु, वस् तथा घस् के सकार को) भी (मूर्धन्य आदेश होता है)। च-VIII. iii. 62 (अभ्यास के इण से उत्तर ण्यन्त जिष्विदा,ष्वद तथा षह धातुओं के सकार को सकारादेश होता है, षत्वभूत सन् के परे रहते) भी।