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च-VIII. 1.34
(हि शब्द से युक्त तिडन्त) भी (अनुकूलता गम्यमान होने पर अनुदात्त नहीं होता)। च-VIII. 1. 38
(यावत् और यथा से युक्त एवं उपसर्ग से व्यवहित तिङ्को ) भी (पूजा-विषय में अननुदात्त नहीं होता, अर्थात् अनुदात्त होता है)। च-VIII. 1.40 (अहो शब्द से युक्त तिङन्तको) भी (पूजा विषय में अनुदात्त नहीं होता)। च-VIII. 1. 42
(पुरा शब्द से युक्त तिङन्त को) भी (शीघ्रता अर्थ गम्यमान होने पर अनुदात्त नहीं होता)। । च-VIII. I. 48
जिससे उत्तर चित् है तथा जिससे पूर्व कोई शब्द नहीं है, ऐसे किंवृत्त शब्द से युक्त तिङन्त को) भी (अनुदात्त नहीं होता)। च-VIII. I. 49
(अविद्यमान पूर्ववाले आहो, उताहो से युक्त व्यवधा- नरहित तिङ् को) भी (अनुदात्त नहीं होता है)। च - VIII.1.52
(गत्यर्थक धातुओं के लोडन्त से युक्त लोडन्त को) भी (अनुदात्त नही हाता, यदि कारक सारे अन्य न हो तो)। च - VIII. 1.53
(हन्त से युक्त सोपसर्ग उत्तमपुरुषवर्जित लोडन्त तिङन्त को) भी विकल्प से अनुदात्त नहीं होता)। च-VIII. 1. 58 - (चादियों के परे रहते) भी (गतिभिन्न पद से उत्तर तिङन्त को अनुदात्त नहीं होता)। च.. -VIII. 1.59
देखें-चवायोगे VIII. I. 59 च.. -VIII. 1.61
(अह' से युक्त प्रथम तिङन्त को विनियोग) तथा (क्षिया अर्थात् अनौचित्य गम्यमान होने पर अनुदात्त नहीं होता)।
च-VIII. 1.62
देखें-चाहलोपे च VIII.1.62 च -VIII. 1.64 (वै तथा वाव से युक्त प्रथम तिङन्त को) भी विकल्प से वेद-विषय में अनुदात्त नहीं होता)। च - VIII. 1.69
(गोत्रादिगण-पठित शब्दों को छोड़कर निन्दावाची सुबन्त शब्दों के परे रहते) भी (सगतिक एवं अगतिक दोनों तिङन्तों को अनुदात्त होता है)। .. च - VIII. 1.70
(उदात्तवान् तिङन्त के परे रहते) भी (गतिसञक को. निघात होता है)। च-VIII. 1.9
(मकारान्त एवं अवर्णान्त तथा मकार एवं अवर्ण उपधा : वाले प्रातिपदिक से उत्तर मतुप को वकारादेश होता है, किन्तु यवादि शब्दों से उत्तर मतुप् को व नहीं होता)। . च-VII. I. 13 (उदन्वान् शब्द उदधि) तथा (सञ्जा-विषय में निपादन
च-VIII. 1.22 (परि के रेफ को) भी (ध तथा अङ्कशब्द परे रहते विकल्प से लत्व होता है)। च-VIII. ii. 25 (धकारादि प्रत्यय के परे रहते) भी (सकार का लोप होता
च - VIII. 1. 29
(पद के अन्त में) तथा (झल परे रहते संयोग के आदि के सकार तथा ककार का लोप होता है)। च-VIII. il. 38
(झषन्त दध् धातु के बश् के स्थान में भष् आदेश होता है; तकार तथा थकार परे रहते) तथा (झलादि सकार एवं ध्व परे रहते भी)। च-VIII. ii. 42
रेफ तथा दकार से उत्तर निष्ठा के तकार को नकारादेश होता है) तथा (निष्ठा के तकार से पूर्व के दकार को भी नकारादेश होता है)।