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...कालेषु
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कित
...कालेषु - v. iii. 27
देखें - दिग्देशकालेषु v. iii. 27 कालोपसर्जने - I. ii. 57
काल तथा उपसर्जन = गौण (भी अशिष्य होते हैं,तुल्य हेतु होने से अर्थात् पूर्वसूत्रोक्त लोकाधीनता के हेतु होने से)। काल्या-III. I. 104
(प्रथम गर्भ के ग्रहण का) समय हो गया है- इस अर्थ में (उपसर्या शब्द निपातन किया जाता है)। ...काश... - IV.ii. 79
देखें - अरीहणकृशाश्व० IV. ii. 79 ...काश... -VI. ii. 82
देखें-दीर्घकाश VI. ii. 82 काशे-VI. iii. 122
(इगन्त उपसर्ग को)काश शब्द उत्तरपद रहते (दीर्घ होता है,संहिता के विषय में)। काश्यप... - IV. iii. 103
देखें - काश्यपकौशिकाभ्याम् IV. iii. 103 ...काश्यप.. - VIII. iv.66
देखें- अगार्ग्यकाश्यप VIII. iv.66 काश्यपकौशिकाभ्याम् - IV. iii. 103
(ततीयासमर्थ ऋषिवाची) काश्यप और कौशिक प्रातिपदिकों से (प्रोक्त अर्थ में णिनि प्रत्यय होता है)। काश्यपस्य-I.ii. 25
काश्यप आचार्य के मत में (तृष, मृष, कृश् - इन धातुओं से परे सेट् क्त्वा कित् नहीं होता है)। काश्यपे-IV.i. 124 (विकर्ण तथा कुषीतक शब्दों से) काश्यप अपत्य विशेष को कहना हो (तो ठक् प्रत्यय होता है)। काश्यादिभ्यः -IV.ii. 115
काशी आदि प्रातिपदिकों से (शैषिक ठञ् तथा जिठ् प्रत्यय होते हैं)। ...काषि.. -VI. iii. 53
देखें-हिमकाषिहतिषु VI. iii. 53 कास्... -III. I. 35 देखें-कास्प्रत्ययात् III. I.35
कासू... - V. iii. 90
देखें - कासूगोणीभ्याम् v. iii. 90 कासूगोणीभ्याम् -V. iii.90
(छोटा' अर्थ गम्यमान हो तो) कासू तथा गोणी प्रातिपदिकों से (ष्टरच प्रत्यय होता है)। कासू = शक्ति नामक अस्त्र । गोणी = बोरी। - कास्तीर... - VI. I. 150
देखें - कास्तीराजस्तुन्दे VI.i. 150 कास्तीराजस्तुन्दे - VI.i. 150
कास्तीर तथा अजस्तुन्द शब्दों में सुट का निपातन किया जाता है,(नगर अभिधेय हो तो)। कास्प्रत्ययात् - III. I. 35
'कास शब्दकुत्सायाम्' धातु से तथा प्रत्ययान्त धातुओं से (लट् लकार परे रहते आम् प्रत्यय होता है, यदि मन्त्रविषयक प्रयोग न हो तो)। कि... - III. ii. 171
देखें -किकिनौ III. ii. 171 किः -III. iii.92
(उपसर्ग उपपद रहने पर घुसंज्ञक धातुओं से कर्तृभिन्न कारक संज्ञा तथा भाव में) कि प्रत्यय होता है। किकिनौ -III. ii. 169
(आत् = आकारान्त, ऋ = ऋकारान्त तथा गम्, हन्, जन् धातुओं से तच्छीलादि कर्ता हो तो वेदविषय में वर्तमानकाल में) कि तथा किन् प्रत्यय होते है,(और उन कि, किन् प्रत्ययों को लिट्वत् कार्य होता है)। किङ्किल... - III. iii. 146
देखें - किङ्किलास्त्य III. iii. 146 किङ्किलास्त्यर्थेषु - III. iii. 146
(अनवक्तृप्ति तथा अमर्ष गम्यमान न हो तो) किङ्किल तथा अस्ति अर्थ वाले पदों के उपपद रहते (धातु से लूट प्रत्यय होता है)। कित् -I. ii. 5
(असंयोगान्त धातु से परे अपित् लिट् प्रत्यय) कित् के समान होता है।