Book Title: Arsh Vishva
Author(s): Priyam
Publisher: Ashapuran Parshwanath Jain Gyanbhandar

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Page 7
________________ ★ महाराणा प्रताप की अभिमानी व अदम्य आत्मा को झुकाने में अकबर को सफलता न मिली । (पृ० ८०) चिंतन - इस प्रतिपादन के पूर्व अकबर बादशाह की पर्याप्त प्रशंसा की गई है, जिस की तुलना में राजस्थान के गौरव व सारे भारत के लिये आदरणीय महाराणा प्रताप के लिये केवल दो वाक्य कहे गये है। जिसमें से पहला वाक्य यही है । इस स्थिति में ऐसा लग रहा है कि अकबर को जो निष्फलता मिली उस पर यहा अफसोस व्यक्त किया गया है। यदि ऐसा न होता तो 'अभिमानी व अदम्य' इन शब्दों का जगह पर स्वाभिमानी या आत्मगौरवयुक्त व शूरवीर या महाप्रतापी जैसे शब्दो का प्रयोग करना अनुरूप हो सकता था । ★ महाराणा प्रतापने अकबर को विदेशी विजेता समजा, उनसे औपचारिक संबंध बाँधने से बजाय जंगल में मारे मारे फिरना बेहतर समजा । (पृ०८०) चिंतन - क्यां अकबर को विदेशी समजना व उसके अंकुश में न आना, यह महाराणा प्रताप की भूल थी ? अकबर के गुणानुवाद में पूरे दो पन्ने व भारत की शान जैसे महाराणा प्रताप के लिये केवल दो वाक्य, वो भी ऐसे जिनसे उनके गौरव की अभिव्यक्ति नहीं हो रही है, अपि तु उनकी प्रेक्षाशक्ति पर संशय हो रहा है, और उनका स्वमान व संस्कृतिप्रेम अनादरपात्र हो रहा है। महाराणा प्रतापने जो किया व न केवल उचित था, अपि तु समग्र देश व विश्व के लिये आदर्शरूप था । इसी लिये आज सैंकड़ो साल बाद भी भारतीय जनता उनके निरुपम गुणों का सम्मान कर रही है। व्यक्ति अपने गुणों से ही महान बन सकती है, न कि साम्राज्य के विस्तार से । याद रहे, महाराणा प्रताप से भी अधिक साम्राज्य अकबर का था, और उससे भी अधिक अंग्रेजो का, तथापि न आज अकबर की पूजा हो रही है, न अंग्रेजो की । महाराणा प्रताप के सत्कार की तो क्या बात कहे, उनके घोडे तक की प्रतिमा बनाकर भारतीय जनताने उसे अश्रुपूर्ण श्रद्धांजलि दी है। आज भी किसी 'चेतक' सर्कल से गुजरते लोग उसे देखते है, और उनके स्मृतिपट पर महाराणा प्रताप के अलौकिक शौर्य व संस्कृतिप्रेम का एक इतिहास खडा हो जाता है । उनका हृदय एक रजपूत राजा की गौरवगाथा और एक अश्वरत्न की स्वामिभक्ति के प्रति झुक जाता है। तो क्यां यह भारतीय जनता की भूल है? हमें तो इस बात का आश्चर्य हो रहा है कि केन्द्र सरकार या राजस्थान सरकार ने इस पुस्तक को पाठ्यपुस्तक का स्थान देने से पहले इस का निरीक्षण नहीं किया होगा? संपादकश्री व सलाहकारश्री आदि कमिटीने वास्तविकता व जनता की भावना का खयाल नहीं किया होगा? महाराणा प्रताप तथा छत्रपति शिवाजी महाराज तो भारतीय इतिहास के गौरवशाली आधारस्तम्भ है। उन्होंने धर्म व संस्कृति की रक्षा करके इस देश की उत्कृष्ट सेवा की है। उन की प्रशंसा में जो पुस्तक मौन जैसी है, उस पुस्तक के लिये मध्यस्थ इतिहासकारों व मनीषीओं का प्रामाणिक अभिप्राय क्या होगा ? ★ महिलाओं की पर्दा प्रथा से सामाजिक विकास में रुकावट आयी ।

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