________________
की उपाधि से विभूषित। 1998 - सराकोद्धारक संत उपा. ज्ञानसागरजी के सान्निध्य में 23-02-98 को आचार्य शांतिसागर
छाणी स्मृति श्रुत संवर्द्धन पुरस्कार से सम्मानित । 2006 - तोड़ा की गोठ (माणक चौक दि. जैन मन्दिर) द्वारा प्रतिष्ठा मर्मज्ञ की उपाधि से सम्मानित एवं
नवनिर्मित संहितासूरि पं. नाथूलाल जैन शास्त्री हाल का लोकार्पण । 2007 - मुनि श्री प्रणामसागरजी महाराज के सान्निध्य में इन्दौर में श्रुत पंचमी (19.06.07) के
अवसर पर जैन मनीषी की उपाधि से सम्मानित । यह पं. जी के जीवन का अन्तिम सार्वजनिक
सम्मान रहा।
आदरणीय पं. जी का व्यक्तित्व बहुआयामी, जीवन सरलतापूर्ण एवं प्रेरक रहा है। हीरा भैया प्रकाशन से डॉ. नेमीचन्द जैन के सम्पादकत्व में प्रकाशित तीर्थंकर पत्रिका ने जून 1978 (वर्ष-8, अंक3) में पं. नाथूलाल शास्त्री विशेषांक प्रकाशित किया था। यह विशेषांक पं. जी के व्यक्तित्व पर विस्तृत प्रकाश डालने के साथ ही जैन पं. परम्परा का संग्रहणीय दस्तावेज है। इसी विशेषांक में पं. जी ने पृष्ठ 17 पर आत्मकथन में समाज की स्थिति का चित्र खींचा है।
'पण्डितों को समाज में बहुत कम वेतन मिलता है। उनसे अधिक एक क्लर्क या मुनीम को मिलता है। किसी पंचायती संस्था में काम करने वाले पण्डितजी को सभी अपना भृत्य मानते हैं। सब को खुश रखे बिना वह अपने पद पर स्थिर नहीं रह पाते । मेरा तो व्यक्तिगत संस्था का काम होने से सारा जीवन एक ही जगह व्यतीत हो गया।'
सर सेठ हुकुमचन्द जी के खानदान के वरिष्ठतम सदस्य एवं कुन्दकुन्द ज्ञानपीठ तथा दिगम्बर जैन उदासीन आश्रम ट्रस्ट आदि दर्जनों संस्थाओं के अध्यक्ष श्री देवकुमारसिंह कासलीवाल (काका सा.) ने पं. जी को श्रद्धांजलि समर्पित करते हुए कहा कि 'पं. जी का ज्योतिष विषयक ज्ञान अत्यन्त सटीक था। मैंने स्वयं पारिवारिक एवं सामाजिक कार्यों हेतु जब कभी कोई मुहूर्त पूछा वह सदैव बहुत ही फलप्रद रहा। उनके निधन से समाज ने एक विश्वस्त ज्योतिष मर्मज्ञ खो दिया है।'
कुन्दकुन्द ज्ञानपीठ परिवार को इस जैन मनीषी के निधन से अपूरणीय क्षति हुई है।
पं. नाथूलालजी शास्त्री को सम्मानित करते हुए उपराष्ट्रपति श्री वी.डी. जत्ती (1974)
अर्हत् वचन, 19 (3), 2007
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org