Book Title: Arhat Vachan 2007 07
Author(s): Anupam Jain
Publisher: Kundkund Gyanpith Indore

View full book text
Previous | Next

Page 23
________________ आम्रवृक्ष आम्रश्चूतो रसालश्च सहकारोऽतिसौरभः । कामाङ्गो मधुदूतश्च माकन्दः पिकबल्लभः ॥ भा. प्र. नि., पृ. 550 आम का लेटिन नाम Mangifera indica linn Fam. Anacardiaceae है। आम का वृक्ष सभी जगह पाया जाता है। इसका वृक्ष बड़ा होता है। कृत्रिम रीति से पकाये गये आम के फल के गुण - आम्र कृत्रिम पक्वञ्च तद्भवेत्पित्तनाशनम् । रसस्याम्लस्य हीनस्तु माधुर्याच्च विशेषतः ॥107 चूषितं तत्परं रुच्यं बलवीर्यकरं लघु । शीतलं शीघ्रपाकि स्याद्वातपित्तहरं सरम् ॥18॥ भा. प्र.नि., पृ. - 550 यदि आम का फल कृत्रिम रीति से पकाया गया हो तो वह पित्तनाशक होता है क्योंकि उसमें का अम्लरस निकल जाता है तथा मधुर रस की विशेषता हो जाती है। यदि वह चूसा जाये तो अत्यन्त रुचिजनक, बलवीर्यकारक, लघु, शीतल, शीघ्र हजम होने वाला, सारक एवं वात-पित्तनाशक है । 19 - भगवान मल्लिनाथ गत्वाश्वेतवनोद्यानमुपवासद्वयान्वितः । स्वजन्ममासनक्षत्रदिनपक्षसमाश्रितः ॥ 47 || दिनषट् के ते तस्य छाद्मस्थ्ये प्राक्तने वने । अधस्तरोरशोकस्य त्यक्ताहद्वितंयाद् गतः ||51|| पूर्वोक्तवन (श्वेतवन) में अशोकवृक्ष के नीचे दो दिन के लिए गमानागमन त्याग कर दिया । अशोकवृक्ष अशोको हेमपुष्पश्च वञ्जुलस्ताम्रपल्लवः । कङ्केलिः पिण्डपुष्पश्च गन्धपुष्पो नटस्त्था ||47|| भा. प्र. नि., पृ. - 500 अशोक, हेमपुष्प, वञ्जुल, ताम्रपल्लव, कङ्केलि, पिण्डपुष्प, गन्धपुष्प, नट संस्कृत नाम हैं । लेटिन नाम Saraca Indica linn Fam. Leguminosae है। यह मध्य और पूर्वी हिमालय, पूर्व बंगाल और दक्षिण भारत में पाया जाता है। बंगाल में इसका अधिक आदर है और प्रायः वहां की सब वाटिकाओं में देखा जाता है। इसका वृक्ष बड़ा, सीधा और झोपड़ाकार होता है तथा यह बारहों मास हरा भरा दिखाई पड़ता है। अशोकः शीतलस्तिक्तो ग्राही वर्ण्यः कषायकः । दोषापचीतृषादाहकृमिशोषविषास्रजित् ॥ भा.प्र.नि., पृ. 500 अशोक तिक्त तथा कषायरस युक्त, शीतल, ग्राही, शरीर के वर्ण को उत्तम करने वाला एवं वातादिदोष, अपच, तृषा, दाह, कृमि, शोष, विष और रक्तविकार को दूर करने वाला है। अर्हत् वचन, 19 (3), 2007 Jain Education International For Private & Personal Use Only 19 www.jainelibrary.org

Loading...

Page Navigation
1 ... 21 22 23 24 25 26 27 28 29 30 31 32 33 34 35 36 37 38 39 40 41 42 43 44 45 46 47 48 49 50 51 52 53 54 55 56 57 58 59 60 61 62 63 64 65 66 67 68 69 70 71 72 73 74 75 76 77 78 79 80 81 82 83 84 85 86 87 88 89 90 91 92 93 94 95 96