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महासमिति, परिषद एवं अन्य संगठनों व संस्थाओं के द्वारा पुरजोर तरीके से गुजरात के राज्यपाल नवलकिशोर शर्मा तथा मुख्यमंत्री नरेन्द्र मोदी को विरोध दर्ज कराया गया है। ऐसे गम्भीर विवादास्पद प्रकरण के सिलसिले में भारत के राष्ट्रपति महोदय का दखल वांछनीय है तथा इसे अदालत में चुनौती दिया जाना भी विचारणीय हो जाता है ।
कहना न होगा कि उच्चतम न्यायालय के न्यायमूर्ति श्री एच. बी. सिन्हा और न्यायमूर्ति श्री दलवी भण्डारी की दो सदस्यीय खण्डपीठ ने उत्तर प्रदेश के एटा जिले में जैन समुदाय के कन्या जूनियर हाईस्कूल में शिक्षक की सेवाएं समाप्त करने से संबंधित मामले में यह व्यवस्था दी है कि जैन धर्म हिन्दू का हिस्सा नहीं है, तथा इस समुदाय को अपने शिक्षण संस्थान स्थापित करने और संचालन का अधिकार
है ।
प्रासंगिक रूप से व्याख्या में दिगम्बरत्व की पुनर्स्थापना के सिलसिले में एक ऐतिहासिक सच्ची घटना का उल्लेख ! बीसवीं सदी के तीसरे चौथे दशकों के दौरान जैनत्व के अस्तित्व, आस्था एवं संतपरम्परा के निर्वहन हेतु दिगम्बराचार्य चरित्रचक्रवर्ती शान्तिसागरजी महाराज की दिगम्बरत्व की महिमा और पुनर्स्थापना में अतुलनीय अवदान स्तुत्य एवं अविस्मरणीय है। प्रशासकीय अवरोध, विषमताओं व प्रतिकूलताओं के बावजूद अहिंसा, साधना व आचरण का संबल व तपश्चर्या के बूते पर एक अनूठी मिसाल कायम हुई।
कुछ भी कहें धर्म पर कानून बनाना सरकार का काम नहीं है क्योंकि यह आस्था और मान्यता का प्रश्न है। यही कि जैन को जैन ही रहने दें, भलाई इसी में है। जैन श्रमण संस्कृति वैदिक संस्कृति से पृथक है। धर्म व दर्शन से जुड़े सिद्धान्तों को मुद्दा बनाया जाना कोई अक्लमंदी की बात नही हो सकती । जैनत्व के प्रति प्रतिबद्धता और समर्पण परमाश्वयक है। सारभूत चीज यही है।
प्राप्त : 15.01.07
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संस्कृति बोध कला वीथिका के उद्घाटन
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देवकुमारसिंह कासलीवाल
अध्यक्ष
एवम्
राष्ट्रीय जैन विद्या संगोष्ठी
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डॉ. अनुपम जैन मानद सचिव
अर्हत् वचन, 19 (3), 2007
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