Book Title: Arhat Vachan 2007 07
Author(s): Anupam Jain
Publisher: Kundkund Gyanpith Indore

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Page 32
________________ में कल्पवृक्ष बहुत कम रह गए थे और खाद्यान्न के लिए कृषि का अविर्भाव हुआ। आदि तीर्थंकर ऋषभदेव पर कृषि का उपदेश आरोपित किया जाता है जो उचित प्रतीत नहीं होता। आदिनाथ तो अहिंसा धर्म के प्रथम उद्घोषक एवं अहिंसा के स्वयं साक्षात् मूर्तिमान प्रतीक थे वे अपरिमित हिंसा के कारण कृषि का उपदेश कदापि नहीं दे सकते जबकि विगत शताब्दी के पंडित दौलतराम जी ने भी अपनी सुप्रसिद्ध आध्यात्मिक रचना छहढाला में कृषि को हेय माना है : देय न उपदेश, होय अध बनज कृषि से " कर प्रमाद जल, भूमि, वृक्ष, पावक न विराधे । असि, धन, हल हिंसोपकरण नहिं दे यश लाभे ।। "" वैदिक साहित्य यजुर्वेद, मनुस्मृति आदि में भी कृषि को हेय माना है: " वैश्यकृत्यादि जीवंस्तु ब्राह्मणः क्षत्रियोऽपि वा । हिंसा प्रायां पराधीन: कृषिं यत्मेन वर्जयेत ॥ कृषिं साध्विति मन्यन्ते सा वृत्तिः सद्विगर्हितो । भूमिं भूमिशयांश्चैव हान्ति काष्ठ मयोमुख ।। ' अर्थात् वैश्यवृति से जीते हुए भी ब्राह्मण और क्षत्रिय बहुत हिंसा वाली और पराधीन (वर्षा आदि पर निर्भर) खेती को यत्न से छोड़ दें। खेती अच्छी है ऐसा लोग कहते हैं परन्तु सत्पुरुषों द्वारा इसलिए निन्दित है कि किसान का लोहा लगा हुआ हल भूमि और भूमि में रहने वालों का नाश कर देता है और क्योंकि धान्य की खेती से वनों का नाश हो जाता है, पशुओं के चरागाह नष्ट हो जाते हैं। वन वृक्षों से जो शीतलता प्राप्त होती है वह नहीं रहती। इस शीतलता के अभाव में वर्षा कम हो जाती है और प्राणनाशक वायु (कारबनडाइ ऑक्साइड आदि) के बढ़ने से वायु जहरीली हो जाती है और नाना प्रकार की बीमारियाँ पैदा हो जाती है। अवर्षण से भूमि नीरस हो जाती है...। 'बहन्नमकृषिवलम ... अर्थात् वन वृक्षों से बिना खेती के बहुत सा अन्न अर्थात् मनुष्य के आहार की उत्पत्ति होती है। " स्वादोः फलस्य जग्ध्वाय 119 अर्थात् मोक्षमार्गी को सुस्वादु फलों का आहार करना चाहिए। " पुष्प-मूल-फलैर्वापि केवलैर्वतैयेत्सदा । काल पक्वैः स्वयं शीर्णर्वैरवानसमेत स्थितः ॥ 10 अर्थात् पुष्प मूल अथवा काल पाकर पके स्वयं टपके फलों से वानप्रस्थी निर्वाह करे। वाल्मिकी रामायण में राम के फलाहार पर ही रहने का उल्लेख है: 'कुशचीरा जिन घरं फल मूलाशनं च माम् । ... अर्थात् मैं कुशचीर पहने हुए... केवल फल-फूल खाकर ही रहता हूँ। ऐसा ही भरत, लक्ष्मण, सीता के लिए भी उल्लेख है। 12 " वैज्ञानिकों के अनुसार कृषि का आविर्भाव या आविष्कार लगभग दस हजार वर्ष पूर्व ही हुआ। इसके पूर्व मनुष्य का आहार वनों से प्राप्त फल फूल ही थे। यह अवधारणा कि प्रारम्भ में मानव मांसाहारी अर्हत् वचन, 19 (3), 2007 28 Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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