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जैनगुरुओं के निकट उदासीन श्रावक के रूप में धर्मसाधन किया। शिवमार जैनधर्म में 7 का महान संरक्षक था। श्रवणबेलगोल में एक जिनालय भी इसने बनवाया था जिसे शिवमारन वसदि कहते हैं। युवराज भारसिंह और उसके चाचा दुग्गमार ने अंजनेय नामक मन्दिर बनवाया था। इस वंश में अनेक राजा हुए जिन्होंने जैनधर्म संरक्षण में अपना योगदान दिया।
राजदमल्ल नरेश के मंत्री चामुण्डराय के कारण गंगवंश इतिहास में अमर हो गया। यह मंत्री राजनीतिज्ञ वीर योद्धा, स्वामी भक्त, कन्नड़, संस्कृत, प्राकृत भाषाओं का विद्वान, कवि मंत्री राजनीतिज्ञ वीर योद्धा, स्वामी भक्त, कन्नड़, संस्कृत, प्राकृत भाषाओं का विद्वान, कवि और लेखक था । दक्षिण भारत में जैनधर्म की स्थित इसने सुदृढ़ की। अपनी माता की इच्छापूर्ति करने के लिये उसने 978ई. में श्रवणबेलगोल मे गोम्मटेश्वर बाहुबली की प्रतिमा का निर्माण कराया था। इसके अलावा भी कल्याणी के कलचुरि,चोरवंश उपवंश सौन्दत्ति के रट्ट कोंकण के शिलाहार, चंगाल्व वंश, अलुव वंश, गंगधारा का चालुक्य वंश,वंग, वंष,पोम्बच्चपुर के तांतर, वारंगल के कांतीय, देवगिरि के यादव इत्यादि वंश दक्षिण में हए है, जिन्होंने जैनधर्म संरक्षण में अपना योगदान दिया है। लेकिन विस्तार भय से हम उन सबका विस्तृत विवेचन यहाँ नहीं कर रहे हैं। 24 सन्दर्भ :
गोम्मटेश्वर बाहुबलि एवं श्रवणबेलगोल, इतिहास के परिप्रेक्ष्य में, सतीश कुमार जैन, प्रकाशक-लाड़ादेवी प्रकाशन ग्रंथमाला, पृ. 49 वही, पृष्ठ 58, पृष्ठ 61 वही, पृष्ठ 67 संक्षिप्त जैन इतिहास भाग-3,खण्ड-3, दक्षिण भारत का मध्यकालीन इतिहास बाबू कामताप्रसाद जैन, मूलचन्द किसनदास कापड़िया, सूरत, पृ. 35 वही पृष्ठ 34 गोम्मटेश्वर बाहुबलि एवं श्रवणबेलगोल, पृष्ठ 82-83 संक्षिप्त जैन इतिहास पृष्ठ 79 गोम्मटेश्वर बाहुबलि एवं श्रवणबेलगोल, पृष्ठ 86 प्रमुख ऐतिहासिक जैन पुरुष और महिला-डॉ. ज्योतिप्रसाद जैन भारतीय ज्ञानपीठ, दिल्ली 1975 पृष्ठ 87 गोम्मटेश्वर बाहुबलि एवं श्रवणबेलगोल, पृष्ठ 87 वही, पृष्ठ 89 भारतीय इतिहास एक दृष्टि, डॉ.ज्योतिप्रसाद जैन, भारतीय ज्ञानपीठ 1999 पृष्ठ 216
गोम्मटेश्वर बाहुबलि एवं श्रवणबेलगोल, पृष्ठ 89-90 14. भारतीय इतिहास एक दृष्टि, पृष्ठ 216-218
गोम्मटेश्वर बाहुबलि एवं श्रवणबेलगोल, पृष्ठ 92 भारतीय इतिहास एक दृष्टि, पृष्ठ 252 वही, पृष्ठ 253
वही, पृष्ठ 257 19. वही, पृष्ठ 181-183
वही, पृष्ठ 187 वही, पृष्ठ 186-188
वही, पृष्ठ 188-189 23. वही, पृष्ठ 197 24. वही, पृष्ठ 205-206 प्राप्त: 19.01.06 58
अर्हत् वचन, 19 (3), 2007
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