Book Title: Arhat Vachan 2007 07
Author(s): Anupam Jain
Publisher: Kundkund Gyanpith Indore

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Page 39
________________ वर्ष - 19, अंक - 3, जुलाई-सितम्बर 2007, 33-36 अर्हत् वचन कुन्दकुन्द ज्ञानपीठ, इन्दौर सिद्धवरकूट - कतिपय तथ्य - सूरजमल बोबरा* सारांश नर्मदा के सुरम्य तट पर स्थित प्रसिद्ध जैन सिद्धक्षेत्र सिद्धवरकूट का वैदिक परम्परा के तीर्थ एवं ज्योतिर्लिंग के रूप में प्रख्यात ओंकारेश्वर से गहरा ऐतिहासिक संबंध है। नर्मदा नदी के एक तट पर सिद्धवरकूट तो नदी के दूसरे तट पर ओंकारेश्वर है। सम्पूर्ण क्षेत्र पूर्व में मांधाता के नाम से प्रख्यात था । ऐतिहासिक पौराणिक संदर्भो का विश्लेषण करते हुए इतिहास की टूटी लडियों को जोड़ने का प्रयास प्रस्तुत लेख में किया गया है। निर्वाण काण्ड (प्राकृत) की 11वीं गाथा में वर्णन है रेवा- णइए तीरे पच्छिम - भायाम्मि सिद्धवर.. कूडे । दो चक्की दह कप्पे आट्ठय - कोडि - णिव्वुदे वन्दे । इस गाथा से स्पष्ट है कि सिद्धवरकूट प्राचीन काल से जैन परंपरा में पूजित है। यहां से दो चक्रवर्ती, 10 कामदेव व साढ़े तीन करोड़ मुनि मोक्ष गये हैं । यह संख्या सिद्धवरकूट के लंबे समय से जैन साधुओं और तपस्वियों की तपस्थली व मोक्षस्थली होने का संकेत देती है। नर्मदा और रेवा के संगम पर स्थित यह सिद्धक्षेत्रा उन और बड़वानी से निकटता से जुड़ा हुआ है। यह तीनों ही स्थान निमाड़ के गौरव हैं। भारत का प्राचीनतम इतिहास नर्मदा और विंध्याचल के साथ एकमेव है। यह इतिहास अब धीरे-धीरे उजागर हो रहा है और आशा करनी चाहिए कि कई नए संदर्भ इससे उजागर होंगे। भट्टारक महेन्द्र कीर्तिजी ने सं 1935 में स्वप्न पाकर खोज की तो उन्हें चन्द्रप्रभु भगवान की सं 1545 की मूर्ति व वि.सं. 11 (?) आदिनाथ भगवान की मूर्ति प्राप्त हुई एवं विशाल खंडित मंदिर परिसर दिखाई दिया। जीर्णोद्धार पश्चात सं.1951 में प्रतिष्ठा द्वारा यह क्षेत्र प्रकाश में आया। आज इस क्षेत्र में ओंकारेश्वर परियोजना के साथ नई हलचल पैदा हुई हैं। बॉध व पन बिजली घर का निर्माण हो रहा है । जैन समाज को जागरूक रहना चाहिए कि वंदित स्थान को कोई हानि न पहुँचे । हमें इन नये का स्वागत तो करना ही है। किंतु अपने प्राचीन तीर्थों की रक्षा के लिए भी जागरूक रहना चाहिए। जैन समाज के लिए देश सब से पहले है किंतु धार्मिक आस्थाएँ भी समानान्तर रूप से महत्वपूर्ण हैं। बाँध स्थल पर प्राचीन मूर्तियाँ प्राप्त हो रही हैं जो इस बात का संकेत दे रही हैं कि नर्मदा-रेवा के संगम स्थल पर प्राचीन काल में भी जैन परिसर था। ट्रेन से सिद्धवरकूट आने के लिए ओंकारेश्वर रोड़ स्टेशन पर उतरना पड़ता है। पहले इस स्टेशन व स्थान का नाम मांधाता हआ करता था। आज भी यह स्थान पोस्ट मांधाता के नाम से जाना जाता है। यदि मांधाता नाम बना रहता तो इतिहास की गइराई में जाने में मदद मिलती। * निदेशक - ज्ञानोदय फाउन्डेशन, 9/2, स्नेहलता गंज, इन्दौर-452003 Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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