________________
दोनों प्रकार के तगर उष्णवीर्य स्वादिष्ट, स्निग्ध तथा लघु होते हैं । यह विष, अपस्मार (मिर्गी रोग), शूल, नेत्ररोग तथा त्रिदोष को दूर करने वाले होते हैं इस प्रकार का उल्लेख कूर्परादिवर्ग - भावप्रकाश निघण्टु में मिलता है।
इसके वृक्ष हिमालय पहाड़ के साधारण भाग में काश्मीर से भूटान तक 4 हजार से 12 हजार फीट की ऊंचाई पर तथा खासिया के पहाड़ों पर 4 से 6 फीट की ऊंचाई पर बहुत पाये जाते हैं।
17 - भगवान कुंथुनाथ स्वयं सम्प्राप्य देवेन्द्रैः शिविकां विजयाभिधाम। आरूह्यामरसंवाह्यां सहेतुकवनं प्रति।।3811
निजदीक्षावने षष्ठेनोपवासेन शुद्धिभाक् । तिलक द्रुममूलस्थश्चैत्रज्योत्स्नापराह के ।।42|| उत्तर पुराण, पृ.-215 भगवान सहेतुक वन (दीक्षा लेने के वन) में तिलक वृक्ष के नीचे विराजमान हुये।
तिलक वृक्ष तिलकः क्षुरकः श्रीमान्पुरुषश्छिन्नपुष्पकः ॥ भा.प्र.नि., पृ.-505 तिलक, क्षुरक, श्रीमान, पुरुष, छिन्न पुष्पक ये सब तिलक के संस्कृत नाम हैं । लेटिन Wendlandia exerta DC fam. Rubiaceae. है।
यह हिमालय के उष्ण प्रदेशीय शष्क जंगलों में चेनाब से नेपाल तक 4000 फीट की ऊंचाई तक एवं उड़ीसा मध्यभारत कोंकण एवं उत्तरी डेक्कन में पाया जाता है । यह खुली हुई और छोटी-छोटी वनस्पतियों से रहित भूमि जैसे नालों के ढालों पर अधिक होते हैं। इसके वृक्ष सुन्दर, झुके हये तथा छोटे होते हैं । पुष्पकाल (मार्च - अप्रैल) में वृक्ष का शिखर चांदनी से ढका मालूम होता है।
तिलकः कटुकः पाके रसे चोष्णो रसायनः । कफकुष्ठक्रिमीन्वस्तिमुखदन्तगदान्हरेत्।।56।। भा.प्र.नि., पृ.-505 तिलक पाक तथा रस में कटु, उष्ण, रसायन एवं कफ, कुष्ठ, कृमि, वस्ति-मुख-दन्त संबंधी रोगों को दूर करने वाला है।
निघण्टुओं में वर्णित इस तिलक वृक्ष के बारे में अभी तक किसी को पता नहीं था कि यह वृक्ष कैसा होता है तथा इसका लेटिन नाम क्या है। सर्वप्रथम ठा. बलवंत सिंह जी ने अपनी पुस्तक बिहार की वनस्पतियां (पृष्ठ 68) में अनेक प्रमाणों के आधार पर तिलक को Wendlandio exerta DC सिद्ध किया है तथा इसका वैज्ञानिक वर्णन किया है। इसके जंगलों में प्रचलित स्थानिक नाम, शास्त्रीय परिचयात्मक पर्याय तथा प्रचलित गुणधर्म सभी आधारों से यह तिलक सिद्ध होता है।
18 - भगवान अरहनाथ शिविकां वैजयन्त्याख्यां सहेतुकवनं गतः। दीक्षां षष्ठोपवासेन रेवत्यां दशमीदिने ।।33।।
ततो दीक्षावने मासे कार्तिके द्वादशीदिने। रेवत्यां शुक्लपक्षेऽपराह्ने चूततरोरधः ।।37।। उत्तर पुराण, पृ.-220 भगवान सहेतक वन (दीक्षावन) में आम्रवक्ष के नीचे बेला का नियम लेकर विराजमान हये।
अर्हत् वचन, 19 (3), 2007
18
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org