Book Title: Arhat Vachan 2007 07
Author(s): Anupam Jain
Publisher: Kundkund Gyanpith Indore

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Page 21
________________ पीपल के वृक्ष देश के प्रायः सभी प्रान्तों में लगाये हुये पाये जाते हैं। इसका वृक्ष बहुत ऊंचा होता है और खूब फैलता है। पीपल वृक्ष पवित्र माना जाता है। पिप्पलो दुर्जरः शीतः पित्तश्लेष्मब्रणास्रजित् । गुरुस्तुवरको रूक्षो वर्ण्यो योनिविशोधनः ॥ ३॥ भा. प्र. नि., पृ. - 513 पीपल कषायरसयुक्त, कठिनता से पचने वाला, शीतल, गुरु, रूक्ष, वर्ण को उत्तम बनाने वाला, योनि का शोधन करने वाला एवं पित्त, कफ, व्रण तथा रक्त विकार को दूर करने वाला है। वने सप्तच्छदस्याधः कृतषष्ठोपवासकः ||421 उत्तर पुराण, पृ. 130 शालवन के उद्यान में (पुरातन वन में) सप्तच्छद वृक्ष के नीचे दो दिन के उपवास का नियम लेकर योग धारण किया । 15 - भगवान धर्मनाथ शिबिकां नागदत्ताख्यामारुह्य सुरसत्तमैः । सह शालवनोद्यानं गत्वषष्ठोपवासवान् ॥38॥ तथैकवर्षच्छद्मस्थकालेऽतीते पुरातने । सप्तच्छद वृक्ष सप्तपर्णः पत्रवर्णः शुक्तिपर्णः सुपर्णकः । सप्तच्छदो गुच्छपुष्पोऽयुग्मपर्णो मुनिच्छदः ॥35॥ बृहत्त्वग्बहुपर्णश्च तथा शाल्मलिपत्रकः । मदगन्धो गन्धिपर्णो विज्ञेयो वङ्कि भूमितः ||36 || राजनिघण्टु, पृ. - 401 सप्तपर्ण, पत्रपर्ण, शुक्तिपर्ण, सुपर्णक, सप्तच्छद, गुच्छपुष्प, अयुग्मपर्ण, मुनिच्छद, बृहत्वक्, बहुपर्ण, शाल्मलिपत्रक, मदगन्ध तथा गन्धिपर्ण, ये सब छतिवन के तेरह नाम हैं। सप्तपर्ण (सप्तच्छद) का वर्णन पूर्व में भ. अजितनाथ के साथ किया जा चुका है। 16- • भगवान शांतिनाथ बहुभिर्मुनिभिः सार्द्ध श्रीमान् चक्रायुधादिभिः । सहस्राम्रवनं प्राप्य नन्द्यावर्ततरोरधः ॥ 4811 उत्तर पुराण, पृ. 209 भगवान ने सहस्राम्रवन में प्रवेश किया और नन्द्यावर्त वृक्ष के नीचे बेला के उपवास का नियम लेकर वे विराजमान हो गये । Jain Education International नन्द्यावर्त / तगर राजकीय आयुर्वेद विद्यालय झांसी से सम्पर्क करने पर उनके द्वारा बतलाया गया कि तगर ही नन्द्यावर्त है। अर्हत् वचन, 19 (3), 2007 कालानुसार्य तगरं कुटिलं नहुषं नतम् । अपरं पिण्डतगरं दण्डहस्ती च बर्हिणम् ॥28॥ तगरद्वयमुष्णं स्यात्स्वादु स्निग्धं लघु स्मृतम् । विषापस्मारशूलाक्षिरोगदोषत्रयापहम् ||2911 भा. प्र.नि., पृ. 199 For Private & Personal Use Only 17 www.jainelibrary.org

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