Book Title: Arhat Vachan 2007 07
Author(s): Anupam Jain
Publisher: Kundkund Gyanpith Indore

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Page 24
________________ चम्पकद्रुममूलस्थो विहितोपोषितद्वयः ।। 46 | उत्तर पुराण, पृ. - 247 भगवान ने दीक्षा लेने के वन (नील वन) में चम्पक वृक्ष के नीचे स्थित होकर दो दिन के उपवास का नियम लिया । 20 - भगवान मुनिसुव्रतनाथ प्राप्य षष्ठोपवासेन वनं नीलाभिधानकम् । वैशाखे बहुले पक्षे श्रवणे दशमीदिने || 41 || मासोनवत्सरे याते छाद्मस्थ्ये स्वतपोवने । चम्पक वृक्ष चाम्पेयश्चम्पकः प्रोक्तो हेमपुष्पश्च स स्मृतः । एतस्य कलिका गन्धफलेति कथिता बुधैः ॥ 3 1|| भा. प्र.नि., पृ. 493 चाम्पेय, चम्पक, हेमपुष्प ये सब संस्कृत नाम हैं। इसकी कली को पण्डित लोग गन्धफली कहते हैं। लेटिन नाम Michelia Champaca linn Fam Magnoliaceae है। चम्पा के वृक्ष प्रायः वाटिकाओं में रोपड़ किये जाते हैं, किन्तु हिमालय में 3000 फुट तथा आसाम, पश्चिमी घाट एवं दक्षिण भारत में वन्य अवस्था में भी पाया जाता है। इसका वृक्ष छोटा करीब 20 फीट ऊंचा होता है और बारहों माह हरा भरा रहता है। चम्पा कटुतिक्तकषाय-मधुर रसयुक्त, शीतल एवं विष, कृमि, मूत्रकृच्छ, कफ, वात, रक्तविकार या वातरक्त और पित्त को दूर करने वाला है । 20 चम्पकः कटुकस्तिक्तः, कषायो मधुरो हिमः । विषक्रिमिहरः कृच्छ्रफवातास्रपित्त जित् ॥ 321 21 - भगवान नमिनाथ गत्वा चैत्रवनोद्यानं षष्ठोपवसनं श्रितः । आषाढकालपक्षेऽश्विनक्षेत्रे दशमीदिनं ||54|| छाद्मस्थ्येन ततः काले प्रयाते नववत्सरे । निजदीक्षावने रम्ये मूले वकुलभूरुहः ||5711 उत्तर पुराण, पृ. - 335 भगवान दीक्षावन (चैत्रवन) में मनोहर वकुल वृक्ष के नीचे बेला का नियम लेकर ध्यानारूढ़ हुये । बकुल वृक्ष बकुलो मधुगन्धश्व सिंहके सरकस्तथा । बकुल, मधुगन्ध, सिंहकेसरक ये मौलसिरी के संस्कृत नाम हैं । लेटिन नाम Mimuscops elengi linn Fam. Sapotceae है। शोभा तथा सुगंध के लिए यह सभी जगह बागों में लगाया हुआ पाया जाता है । दक्षिण तथा अंडमान में अधिक होता है। इसके वृक्ष 50 फीट तक ऊंचे, सघन, चिकने पत्तों से युक्त, झोपडाकार और सुहावने दिखाई पड़ते हैं तथा बारहों मास हरे भरे रहते हैं । Jain Education International वकुलस्तुवरोऽनुष्णः कटुपाकरसो गुरुः । कफपित्तविषश्वित्रकृमिदन्तगदापहः || 33|| भा. प्र. नि., For Private & Personal Use Only पृ. 494 अर्हत् वचन, 19 (3), 2007 www.jainelibrary.org

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