Book Title: Arhat Vachan 2007 07
Author(s): Anupam Jain
Publisher: Kundkund Gyanpith Indore

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Page 20
________________ यह हिमालय के निचले भागों में नेपाल से पूर्व की तरफ वर्मा तक तथा दक्षिण में उत्तरी सरकार तथा पश्चिमी घाट में होता है। सभी स्थानों पर बागों में लगाया हुआ पाया जाता है। कदम्ब का वृक्ष 4050 फीट ऊंचा, बड़ा, छायादार होता है। कदम्बो मधुरः शीतः कषायो लवणो, गरुः । सरो विष्टम्भकृद्रक्षः कफस्तन्यानिलप्रदः । भा. प्र.नि., पृ. 495 कदम्ब मधुर, कषाय तथा लवण रस युक्त, शीतल, गुरु, सारक, रूक्ष, वातविष्टम्भ (वायु का न खुलना) को उत्पन्न करने वाला, कफकारक, दुग्धवर्धक और वायुजनक होता है। 13 भगवान विमलनाथ देवदत्तां समारुह्य शिबिकाममरैवृतः । विभुः सहेतुकोद्याने प्रावाजीद्द्युपवासभाक ॥ त्रिवत्सरमिते याते तपस्येष महामुनिः । निजदीक्षावने जम्बूदुममूले सुपोषितः ॥44|| उत्तर पुराण, पृ. 100 भगवान सहेतुकवन उद्यान में (दीक्षावन) दो दिन के उपवास का नियम लेकर जामुन के वृक्ष के नीचे ध्यानारूढ़ हुये । - जम्बू (जामुन ) जामुन की कई जातियां होती हैं लेकिन श्रेष्ठ राज जामुन है अतः उसका वर्णन किया गया है। फलेन्द्रा कथिता नन्दी राजजम्बूर्महा फला । तथा सुरभिपत्रा च महाजम्बूरपि स्मृता। भा. प्र. नि., पृ. 570 फलेन्द्रा नदी, राजजम्बू, महाफला, सुरभिपत्रा और महाजम्बू ये सब संस्कृत नाम हैं। लेटिन नाम Eugenia Jambolana Lam Fam Myrtaccae है। यह अत्यंत शुष्क भागों को छोड़कर सब प्रांतों में पाया जाता है। इसका वृक्ष बड़ा होता है और वह सदा हरा भरा रहता है। राजजम्बू फलं स्वादु विष्टम्भि गुरु रोचनम् ॥6911 भा. प्र. नि., पृ. 570 बड़ी जामुन का फल - स्वादिष्ट, विष्टम्भक, गुरु तथा रोचक होता है । 14 - भगवान अनन्तनाथ सुरैस्तृतीयकल्याणपूजां प्राप्याधिरूढवान् । यानं सागरदत्ताख्यं सहेतुकवनान्तरे ॥31॥ संवत्सरद्वये यातेछाद्मस्थ्ये प्राक्तने वने। अश्वत्थपादपोपान्ते कैवल्यमुदपीपदत् ॥35॥ उत्तर पुराण, पृ. 123 भगवान को सहेतुक वन में अश्वत्थ (पीपल) वृक्ष के नीचे केवलज्ञान उत्पन्न हुआ । Jain Education International अश्वत्थः (पीपल) बोधिदुः पिप्पलोऽश्वत्थम्बलपत्र गजाशनः । भा. प्र. नि., पृ. 513 बोधि, पिप्पल, अश्वत्थ, चलपत्र और गजाशन ये सब पीपल के संस्कृत नाम हैं। लेटिन Ficus religiosa linn Fam. MORACEAE है। 16 For Private & Personal Use Only अर्हत् वचन, 19 (3), 2007 www.jainelibrary.org

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