Book Title: Arhat Vachan 2007 07
Author(s): Anupam Jain
Publisher: Kundkund Gyanpith Indore

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Page 18
________________ नागपुष्प, नाग, केशर, नागकेशर, चाम्पेय, नागकिञ्जल्क तथा काञ्चनाह्य ये सब नागकेशर के वृक्षवाची हैं । लेटिन नाम Mesua Ferrea linn. Fam Guttiferae. है । 1 यह पूर्वी हिमालय, आसाम, ब्रम्हा, दक्षिण हिन्दुस्तान और पूर्व बंगाल के पहाड़ों पर पाया जाता है । इसको बगीचों में भी लगाया जा सकता है। इसका वृक्ष छोटा सुन्दर होता है और सदा हरा भरा रहता है। नागपुष्पं कषायोष्णं रूक्षं लध्वामपाचनम् ॥701 ज्वरकण्डूतृषास्वेदच्छर्दिहृल्लासनाशनम् । दौर्गन्ध्य कुष्ठवीसर्प कफपित्तविषापहम् ||7 1।। भा. प्र. नि., पृ. - 230 नागकेशर का फूल कषायरसयुक्त, उष्णवीर्य, रूक्ष, लघु तथा आम को पचाने वाला होता है एवं यह ज्वर, खुजली, तृषा, पसीना, वमन, हृल्लास, दुर्गन्ध, कुष्ठ, कफ, पित्त और विष को दूर करने वाला होता है। 9- भगवान पुष्पदंत आरुह्य शिबिकां सूर्यप्रभाख्यां पुष्पके वने । मार्गशीर्षे सिते पक्षे प्रतिपद्यपराह्वके || 461 दिनद्वयोपवासः सन्नधस्तान्नागभूरुहः । दीक्षावने विधूताधः प्राप्तानन्तचतुष्टयः ||50|l भगवान पुष्पक वन (दीक्षावन) में नाग वृक्ष के नीचे स्थित हुए और अनंतचतुष्टय को प्राप्त हुये । नागवृक्ष का वर्णन पूर्व में भगवान चन्द्रप्रभ के साथ किया जा चुका है । 10- भगवान शीतलनाथ लब्धलौकान्तिकस्तोत्रः प्राप्ततत्कालपूजनः । शुक्रप्रभां समारुह्य सहेतुकवनान्तरे ॥ 44॥ छाद्मस्थ्येन समास्तिस्रो नीत्वा बिल्वद्रुमाश्रयः । पोषकृष्ण चतुर्दश्यां पूर्वाषाढेऽपराह्न गे ||48 || उत्तर पुराण, पृ. - 74 सहेतुकवन में बेल के वृक्ष के नीचे दो दिन के उपवास का नियम लेकर विराजमान हुये । बिल्वः (बेल) बिल्वः शाण्डिल्यशैलूषौ मालूरश्रीफलावपि । भा. प्र.नि., q.-274 बिल्व शाण्डिल्य, मालूर तथा श्रीफल ये सब बेल के संस्कृत नाम हैं । लेटिन नाम Aegle marmelos corr. Fam Rutaceae है । यह आसाम, ब्रह्मा, बंगाल, बिहार, अवध, झेलम मध्य और दक्षिण हिन्दुस्तान तथा श्रीलंका में जंगली और प्रायः सभी स्थानों में एवं बागों में उत्पन्न होता है। इसका वृक्ष मध्यम आकार का 50 फुट से भी ऊंचा होता है । बेल बहुत पवित्र माना जाता है। सूतिकागार के निर्माण में एवं सूतिका के पलंग की लकड़ी, बेल की लेने चरकादि में विधान है। सुश्रुत ने मेधायुष्कामीय अध्याय में विशिष्ट पद्धति से ऋग्वेदोक्त श्रीसूक्त द्वारा बिल्व की आहुति आदि का विधान किया है जिससे अलक्ष्मी का नाश एवं आयुवृद्धि होती है। अर्हत् वचन, 19 (3), 2007 14 Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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