Book Title: Aradhak Banvano Marg
Author(s): Bhadrankarvijay
Publisher: Bhadrankarvijay

View full book text
Previous | Next

Page 10
________________ श्री कापरड़ा स्वर्ण जयन्ती महोत्सव अन्य धर्म वृक्षना मूलमां दया छे तेथी धर्म वृक्षना फलमां पण दया ज प्रकटे छ। साधु दयाना भंडार छे तो अरिहंत अने सिद्ध ए दयाना निधान छ । दयावृत्ति अने दयानी प्रवृत्तिमां तारतम्यता भले हो पण बधानो आधार एक दया ज छे, ते सिवाय बीजुं कशुं ज नथी। अरिहंत अने सिद्ध परमात्मानु ध्यान ए कर्मक्षयर्नु असाधारण कारण छे जीवन रूपांतर करनार रसायणना स्थाने एक दया छे, ते कारणे तीर्थकरोए दयाने ज वखाणी छे । धर्मतत्त्वर्नु पालन पोषण अने संवर्धन करनारी एक दया ज छे अने ते दुःखी अने पापी प्राणीप्रोना दुःख अने पापनो नाश करवानी वृत्ति अने प्रवृत्तिरूप छे तथा क्षायिक भावमां सहज स्वभावरूप छे । ते स्वभाव दुःखरूपी दावानलने एक क्षणमात्रमा शमाववा माटे पुष्करावर्त मेघनी गरज सारे छे । पुष्करावर्त मेघनी धारा जेम भयंकर दावानलने पण शांत करी दे छे, तेम आत्मानो सहज शुद्ध स्वभाव जेओने प्रगट थयो छे, तेश्रोना ध्यानना प्रभावथी दुःख दावानलमां दाझता संसारी जीवोना दुःख दाह एक क्षणवारमां शमी जाय छ । ___ शुद्ध स्वरूपने पामेला अरिहंतादि आत्मानो ध्यान तेमना पूजन वडे, स्तवन वडे, तेमनी आज्ञाना पालन आदि वडे थाय छे । शुद्ध स्वरूपने पामेला आत्माअोनुं ध्यान ए ज परमात्मानुं ध्यान छे अने ए ज निज शुद्धात्मानुं ध्यान छ । ध्यान वडे ध्याता ध्येयनी साथे एकतानो अनुभव करे छे ते समापत्ति छ । अने ते ज एक कर्मक्षयर्नु असाधारण कारण छ । निज शुद्ध आत्मा द्रव्य, गुण अने पर्यायथी अरिहंत अने सिद्ध समान छ, तेथी अरिहंत अने सिद्ध परमात्मानुं ध्यान द्रव्य, गुण अने पर्यायथी पोताना शुद्ध आत्माना ध्यान कारण बने छ । कारणमांथी कार्य उत्पन्न थाय छ, ए न्याये अरिहंत अने सिद्ध परमात्माना ध्यान वडे सकल कर्मनो क्षय थवाथी पोतानुं शुद्ध स्वरूप प्रगटे छ। कर्मक्षयन असाधारण कारण शुद्ध स्वरूप ध्यान छ । कां छ के मोक्षः कर्म क्षयादेव, स चाऽत्मज्ञानतो भवेत् । ध्यानसाध्यं मंतं तच्च, तद्ध्यानं हितमात्मनः ॥१॥ सकल कर्मना क्षयथी मोक्ष उत्पन्न थाय छे । अने सकल कर्मनो क्षय आत्मज्ञानथी थाय छ । आत्मज्ञान परमात्माना ध्यानथी प्रगटे छे, तेनी पोतान' शुद्ध आत्मस्वरूपना

Loading...

Page Navigation
1 ... 8 9 10 11 12 13 14 15 16 17 18 19 20 21 22 23 24 25 26 27 28 29 30 31 32 33 34 35 36 37 38 39 40 41 42 43 44 45 46 47 48 49 50 51 52 53 54 55 56 57 58 59 60 61 62 63 64