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अनाहतनु स्वरूप
ले० अभ्यासी
ज्ञान श्रात्म साधनामा हेतु छे
अनाहत परमोपकारी शास्त्रकार भगवंतोए शास्त्रोमां श्रनाहतनुं स्वरूप यंत्र, मंत्र, ध्यान अने योगी दृष्टि विस्तारथी बतावेलु छे । तेनु ं ज्ञान मेळववाथी प्रात्मसाधनामां प्रागळ वधवा माटेनी अलौकिक दृष्टि प्राप्त थाय छे ।
मंत्र दृष्टिए अनाहत
भिन्न भिन्न यंत्रोमा भिन्न भिन्न आकृतिवाला श्रनाहतनुं श्रालेखन करेलु छे । तेनु' गूढ रहस्य तो ते विषयना विशेष अनुभवी महात्माओ पासेथी ज जाणी शकाय ।
अनाहतना भिन्न भिन्न श्राकाशे
ॐ घटित, ह्रीँ घटित, शुद्ध गोलाकाररेखाद्वयं, लंबगोलाकारे रेखाद्वयं चतुष्कोणाकारे रेखाद्वयं, अनेक रेखारूप, अर्धचंद्राकार विगेरे ।
प्रकटप्रभावी पूर्वोद्धत श्रीसिद्धचक्र महायंत्रमां त्रण स्थले अनाहतनु प्रलेखन करवामां आवे छे।
१. प्रथम वलयनी कणिकामां ( केन्द्रस्थाने) आवेल 'अहे " चारे बाजुथी ॐ ह्रीँ सहित अनाथ वेष्टित छे ।
२. द्वितीय वलयम स्वरादि आठ वर्गो अनाहतथी वेष्टित छे ।
३. तृतीय बलयमां तो ॐ सहित आठ अनाहतोनी स्वतंत्र स्थापना करी तेने आराध्य देवरूप मानी पूजन करवानुं बताव् छे ।
आ रीते यंत्रना केन्द्रस्थानमा रहेल श्री अने स्वरादिना ध्यानथी अनुक्रमे 'अनाहत' नादनी जागृति थाय छे, तथा अनाहत ध्यान करनारने अडतालीश प्रकारनी महान लब्धिप्रो प्रगटे छे । जिन, केवलज्ञानी, मनः पर्यवज्ञानी अवधिज्ञानी, श्रुतकेवली, दशपूर्वधर वगेरे महर्षि पण अनाहतना ध्यानथी ज ते ते लब्धिश्रोने प्राप्त करे छे । श्रा गुप्त रहस्य तृतीय वलयना लब्धि पदोना मध्यमां आठ अनाहतनी स्थापना द्वारा बतावेल छे ।