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श्री कापरड़ा स्वर्ण जयन्ती महोत्सव ग्रन्थ
पण मनुं पूजन-स्मरण-ध्यान अत्यंत भक्तिपूर्वक करवुं जोईए, अने तोज ते पूर्ण फळ आपका समर्थ बने छे ।
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अरिहंतोना परमभक्त ज श्रुतज्ञानना बळे अनाहतनादने प्रगटावी अनुक्रमे आत्मानुभवदशा प्राप्त करी शके छे । शास्त्र के आगमानुसार वर्तन करवुं एज अरिहंतनी प्रज्ञानं पालन छे, अने एज तेमनी तात्त्विकी भक्ति छे ।
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शास्त्रने आगळ करवाथी एटले के शास्त्रानुसार विधिपूर्वक वर्तन करवाथी वीतरागनी भक्ति थाय छे । अने तेमनी भक्ति वडे अवश्य सर्व कार्यनी सिद्धि थाय छे ।"
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प्रमाणे बीजा वलयमां अक्षरो साथै अरिहंतनुं ध्यान करवाथी अनाहतनाद अवश्य उत्पन्न थवानुं सूचव्युँ छे ।
हवे त्रीजा वलयमां ॐ सहित अनाहतनुं स्वतंत्र प्रलेखन ४८ लब्धियोनी मध्यमां करवामां आव्यु छे। तेनुं तात्पर्य ए समजाय छे के अना ध्यानथी के नवपदना ध्यानथी अथवा तो कोईपण अक्षरना ध्यानथी अनाहतनाद प्रगटावी शकाय छे । माटे सुसाधकने जे आलंबन वधु ईष्ट के सरळ लागे, ते पदनुं अवलंबन ते लई शके छे । ॐ आदि एक पण पदनां सतत चिंतन, मनन अने ध्यानद्वारा पण तत्त्वज्ञाननी प्राप्ति थाय छे ।
अहीं पंच-परमेष्ठिवाचक ॐ ना ध्यानवडे अनाहतनादनो प्राविभाव थाय छे, एम जणा छे ने अनाहतना प्राविभाव पछी तरत ज उत्तम साधक, आत्मानी परमानंदमयी रसभरी भूमिका प्राप्त करे छे । अनुभवदशामां मग्न बनेला एवा साधकने अनेक प्रकारनी महान लब्धिश्रो उत्पन्न थाय छे ।
४८ लब्धिधारी महर्षिोना पूजननुं विधान एम बतावे छे, के सर्व साधनामां सद्गुरुनी महत्ता प्रधान स्थाने छे । सद्गुरुनी सेवा अने तेमनो आशिर्वाद ज अनाहतनादने प्रगटावी विविध प्रकारनी लब्धिश्रोने प्राप्त करावे छे । श्रा वलयमां अनाहतनी चारे बाजु जे लब्धिधारी मुनिप्रोनी स्थापना अने ते पछी चोथा वलयमां पण आठ गुरु पादुकानी स्थापना छे, ते एम सूचवे छे के, सर्वकाले गुरुनी परतन्त्रतामां (निश्रामां ) ज साधनानी सफलता थाय छे । सद्गुरुनो उपकार क्षणवार पण न भुलावो जोइए। श्रा जन्ममां ने अन्य जन्मोमां पण अरिहंतादि अनंतानंत गुरुनोना उपकार, अनुग्रह अने आशिर्वाद वडे मारी साधना सफल बनी रही छे, तेथीलेश मात्र पण मनमां गर्व न श्रावे के हुं मारी स्वतंत्र शक्तिथी आगळ वधी रह्यो कुं, एवो नम्र भाव टकी रहेवो जोइये ।
१. शास्त्रे पुरस्कृते तस्मात् वीतरागः पुरस्कृतः । पुरस्कृते पुनस्तस्मिन् नियमात् सर्वसिद्धयः ॥
-ज्ञानसार