Book Title: Aradhak Banvano Marg
Author(s): Bhadrankarvijay
Publisher: Bhadrankarvijay
View full book text
________________
अनाहतनु स्वरूप
इच्छायोग, अध्यात्मयोग अने भावनायोग पण अहिं अवश्य होय छे, अने ध्यानयोग पण अंशे प्रगटे छे । अनुक्रमे नवपदोनी भक्तिपूर्वकना आराधन वडे अने शास्त्रश्रवण द्वारा ध्यानादि योगोनो विकास थतो जाय छे, अने ते अवस्थामां शास्त्रयोग अने वचनानुष्ठान पण घटी शके छे। अने ज्यारे ए ध्यानादि-अनुष्ठान सहज बनी जाय छे, त्यारे असंग-अनुष्ठान तेमज सामर्थ्ययोग पण अवश्य प्रगटे छ । ____ा रीते सूक्ष्मदृष्टिथी विचारतां समजी शकाय छे, के प्रथम वलयमां आलेखायेलो अनाहत ए सम्यग्दर्शन, ईच्छायोग, अध्यात्मयोग, भावनायोग, प्रीति अने भक्ति आदि अनुष्ठानोनो सूचक छ।
बीजा वलयमा पालेखायेलो अनाहत देश विरति, सर्वविरति, प्रवृत्तियोग, ध्यानयोग, स्थैर्ययोग, वचन-अनुष्ठान अने शास्त्रयोगनो सूचक छ । .. त्रीजा वलयमां अनाहतनु स्वतन्त्र स्थापन ए अप्रमत्तदशा अने तेनी आगलना गुणस्थान कोमां थती स्वभावरमणता, सामर्थ्ययोग, समतायोग अने सिद्धियोग आदिनो सूचक छ ।
सुज्ञ वाचकोने योगबिन्दु, योगदृष्टिसमुच्चय, गुणस्थानकक्रमारोह आदि ग्रंथोनु परिशीलन करवाथी उपरोक्त कथननु रहस्य समजाशे । अनाहत ए उत्सर्ग भावसेवा छे, कारण के ते अपवाद भावसेवारूप अर्ह आदि नवपदोना ध्यानथी प्रगटेली आत्मशक्ति छ । अने ते अनाहत, उत्तरोत्तर गुणनी प्राप्तिनु कारण होवाथी अपवाद भावसेवा पण छ । का, छे के:
उत्कृष्ट समकित गुण प्रगटयो, नैगम प्रभुता अंशेजी ; संग्रह आतम सत्तालंबी, मुनिपद भाव प्रशंसेजी ;
कारण भाव तेह अपवादे, कार्यरूपी उत्सर्गेजी। अनाहत ए ध्यानथी प्रगटेली प्रात्मशक्ति होवाथी कार्यरूप, भने उत्तरोत्तर विशुद्ध प्रात्मशक्तिनो हेतु होवाथी कारणरूप पण छ ।
. अनाहत अने समाधि समाधि ए ध्यान विशेष छे' । अनाहत पण विशिष्ट प्रकारचें ध्यान ज होवाथी तेनो समावेश समाधिमां थई शके छे।
समाधिनी व्याख्या ध्याता ध्यान वडे ध्येयस्वरूप बनी जइ पोताने मात्र ध्येयरूपेज अनुभवे ते समाधि छे ।।
१. समाधिः ध्यान विशेषः । (श्रीदशवकालिक हारि० वृत्ति) २. समाधिस्तु तदेवार्थमात्राभासनरूपकः । (अभिधान कोष)

Page Navigation
1 ... 55 56 57 58 59 60 61 62 63 64