Book Title: Aradhak Banvano Marg
Author(s): Bhadrankarvijay
Publisher: Bhadrankarvijay

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Page 59
________________ अनाहतनु स्वरूप २ श्रुतज्ञाना अभ्यासथी जे समाधि प्राप्त थाय ते श्रुतसमाधि । श्रुतज्ञाननो अभ्यास शा माटे ? (क) द्वादशांगीनु ज्ञान मेलववा माटे । (ख) ज्ञानमां एकाग्र बनवा माटे । (ग) तत्त्वज्ञानी बनीने शुद्ध धर्ममां स्थिर रही शके ते माटे 1 (घ) पोते शुद्ध स्वभावमां स्थित होवाथी अन्य शिष्यादिकने पण धर्ममां स्थिर बनावी शके ते माटे। एज रीते तपसमाधि प्रने श्राचारसमाधिनु स्वरूप पण चार चार भेद वडे विस्तारथी समजाववामां आव्युं छे । जिज्ञासुए ते ते ग्रन्थमांश्री गुरुगमद्वारा जाणवु । ५६ श्री सिद्धच महायंत्रनी कणिकामां 'अर्ह" नु' ध्यान पण 'अनाहत' मां लय पामे छे, . ते अरिहंतंनी परमभक्ति रूप विनयनुं फल छे । माटे 'अर्ह" पछी करवामां श्रावतुं अनाहत वेष्टन विनयसमाधिनो सूचक छे । द्वितीय वलयम स्वरादि साथे जे अनाहतनुं श्रालेखन छे, ते श्रुतज्ञान वडे जे समाधि दशा प्राप्त थाय छे, ते श्रुतसमाधिनो सूचक छे । तृतीय वलयां तपस्वी ने प्रचारवंत लब्धिधारी मुनिश्रो साथे अनाहतनुं श्रालेखन छे, ते तप, आचार अने समाधिने सूचवे छे । अर्थात् विनय, श्रुत, तप ने प्रचारना पालनथी अनाहत -समाधि प्रगटे छे, ए रहस्य श्री दशवैकालिक सूत्र जेबा मूल ग्रन्थमां पूर्वधर महर्षि श्रीशयंभव सूरिजी पण बतावेलु छे' । श्रीरिहंत परमात्मानी भक्तिथी चित्तनी प्रसन्नता प्राप्त थाय छे, चित्तनी प्रसन्नताथी 'समाधि' प्रगटे छे अने समाधि वडे सिद्धिपदनी प्राप्ति थाय छे। चित्तनी प्रसन्नता ए प्रभुपूजा अनंतर फल छ । साधक चित्तनी प्रसन्नता प्राप्त करीने कषायोने शांत बनावे छ । अने कषायोनो कारमो उकलाट शमी जवाथी समाधिदशामां ते परमात्माने आत्मसमर्पण करे छ । ૨ १. इमे खलु तेथेरेहि भगवंतेहिं चत्तारि विण्यसमाहिठारणा पन्नता तं जहा विषयसमाहि, सुयसमाहि, तवसमाहि प्राचारसमाहि । मूल -श्रीदशवैकलिक २. श्रभ्यर्चनादर्हताम्, मनः प्रसादस्ततः समाधिश्च । तस्मादपि निःश्रेयसमतो हि तत्पूजनं न्याय: ॥१॥ ३. चित्त प्रसन्ने रे पूजन फल कहयुं रे, पूजा अखंडित एह 1 कपट रहित थइ श्रातम अरपणां रे, आनंदघन पद रेह || - तत्त्वार्थ भाष्य कारिका -षभ जिन स्तवन

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