Book Title: Aradhak Banvano Marg
Author(s): Bhadrankarvijay
Publisher: Bhadrankarvijay
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अनाहत स्वरूप
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माटे बीजा वलयमां अनाहत सहित अष्टवर्ग, आलेखन थयेलुं छे । प्रत्येक वर्गने अनाहतथी वेष्टित करवामां पण एज रहस्य जणाय छे, के अक्षरोना आलंबनथी अनाहतनाद प्रगटाववो जोइए । एटले ज्यां सुधी अनाहतनाद उत्पन्न न थाय, त्यां सुधी अक्षरोनुं आलंबन छोडवू न जोइए । ते माटे का छे के :
"शब्द अध्यातम अर्थ सुणीने, निर्विकल्प आदरजो रे ; शब्द अध्यातम भजना जाणी, हान ग्रहण मति धरजो रे ।"
-(आनंदघनजी) प्रथम वलयमां सम्यग्ज्ञानवडे ज्ञान प्रालेखन (पूजन) थयु छे, छतां अहीं जे स्वतंत्र 'अ' वर्गादिनु आलेखन करवामां आव्यु छे, ते श्रुतज्ञाननी प्रधानता बताववा माटे ज करवामां आव्यु होय एम जणाय छे । श्रुतज्ञान विना अवधि, मनःपर्याय के केवळज्ञान आदि उत्पन्न थई शक्तां नथी । तेम श्रुतज्ञान विना कोईपण प्रकारचें ध्यान पण थई शकतुं नथी । तेथी आत्मसाक्षात्कार करवा माटे श्रुतज्ञाननुं आराधन (आलेखन) अति आवश्यक छ । का, छे के, मुनि शास्त्र दृष्टिवडे सकल शब्द ब्रह्मने जाणीने आत्माना अनुभववडे स्वसंवेद्य एवा परब्रह्मने (शुद्धस्वरूपने) प्राप्त करे छ ।'
अनाहतनाद ए अनुभवदशानी पूर्वभूमिका छ स्वरादि वर्गने अनाहतथी वेष्टित करवाद्वारा एम सूचव्यु छे, के श्रुतना अभ्यास वडे अनुभवदशा प्राप्त करवी जोइए । केमके अनुभव दशानी प्राप्ति माटेनो एज सरल राजमार्ग छे । __ जेम शुष्कज्ञानी घ्यानना अभ्यास विना श्रुतज्ञाननां वास्तविक फळने (समता आनंदने) मेळवी शकतो नथी, तेम श्रुतज्ञाननी सहाय विना शुष्कध्यानी पण अनाहतना अनहद आनंदने के आत्मानुभवना रसास्वादने प्राप्त करी शकतो नथी। प्रा प्रमाणे स्वरादि अक्षरोने अनाहत्तथी वेष्टित करवामां आ अपूर्व रहस्य छुपायेलुं छे। उपरांत अक्षरनां (आगमनां) ज्ञान वडे अक्षरखें ध्यान थई शके छे, अने अक्षरना ध्यान वडे अनक्षरतारूप अनाहत उत्पन्न थाय छे । अने अनाहत वडे अनुभवदशा प्राप्त थाय छ ।
स्वरादि अष्टवर्गनी वचमां सप्ताक्षरी मंत्र 'नमो अरिहंताणं' पालेखन पण महत्त्वभयुछे । द्वादशांगीना अर्थथी उपदेशक अरिहंत परमात्मा ज छे, माटे तेमनी भक्ति तो कोईपण अनुष्ठान वखते अवश्य करवी जोईए । अहीं श्रुतज्ञाननी विशिष्ट आराधना माटे
१. अधिगत्याखिलं शब्दब्रह्म शास्त्रदृशामुनिः। स्वसंवेद्यं परं ब्रह्मानुभवेनाधिगच्छति ॥
-ज्ञानसार

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